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टाटा समूह में आंतरिक मतभेद: सरकार की मध्यस्थता की आवश्यकता

टाटा समूह, जिसे नैतिकता और भरोसे का प्रतीक माना जाता है, इस समय गंभीर आंतरिक मतभेदों का सामना कर रहा है। केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा है, और दो केंद्रीय मंत्री जल्द ही समूह के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत करेंगे। इस विवाद की जड़ टाटा संस की बोर्ड नियुक्तियों और लिस्टिंग योजना से जुड़ी है। जानें इस स्थिति का प्रभाव और भविष्य की दिशा क्या होगी।
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टाटा समूह में आंतरिक मतभेद: सरकार की मध्यस्थता की आवश्यकता

टाटा समूह में चल रही खींचतान

नई दिल्ली। टाटा समूह, जिसे देश और दुनिया में नैतिकता और भरोसे का प्रतीक माना जाता है, इस समय गंभीर आंतरिक मतभेदों का सामना कर रहा है। यह विवाद इतना बढ़ गया है कि केंद्र सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, दो केंद्रीय मंत्री जल्द ही टाटा समूह के वरिष्ठ नेताओं से बातचीत करेंगे ताकि स्थिति को सामान्य किया जा सके और समूह में संतुलन बनाए रखा जा सके।


बैठक में शामिल प्रमुख सदस्य

सूत्रों के अनुसार, इस बैठक में टाटा संस के चेयरमैन एन. चंद्रशेखरन, टाटा ट्रस्ट्स के ट्रस्टी नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन और डेरियस खंबाटा जैसे प्रमुख सदस्य शामिल होंगे। टाटा ट्रस्ट्स, जो टाटा संस में सबसे बड़ी हिस्सेदारी रखता है, हाल के समय में अपने आंतरिक मतभेदों के कारण चर्चा में है।


मामले की जड़

इस विवाद की जड़ टाटा संस की बोर्ड नियुक्तियों, सूचनाओं की पारदर्शिता, और कंपनी की लंबित लिस्टिंग योजना से जुड़ी हुई है। ट्रस्टियों के बीच इस मुद्दे पर दो गुट बन गए हैं। एक गुट, जिसका नेतृत्व नोएल टाटा कर रहे हैं, मौजूदा स्थिति को बनाए रखने के पक्ष में है, जबकि दूसरा गुट, जिसमें मेहली मिस्त्री और प्रमित झावेरी शामिल हैं, सुधारों की मांग कर रहा है।


तनाव और शक्ति संतुलन

तनाव तब बढ़ा जब दूसरे गुट ने ट्रस्टी विजय सिंह की पुनर्नियुक्ति का विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप, ट्रस्ट के भीतर शक्ति संतुलन तीन बनाम चार के अनुपात में बंट गया, जिससे मतभेद स्पष्ट हो गए।


आरबीआई के नियमन से जुड़ा विवाद

एक और महत्वपूर्ण पहलू टाटा संस की आरबीआई के नियमन के तहत "अपर लेयर एनबीएफसी" के रूप में लिस्टिंग से संबंधित है। कंपनी पर लिस्टिंग की समयसीमा पूरी करने का दबाव है, लेकिन समूह ने एनबीएफसी पंजीकरण रद्द करने के लिए भी आवेदन किया है। इस कदम से शापूरजी पलोनजी समूह नाराज है, जो लिस्टिंग को आवश्यक मानता है।


सरकार की चिंता

सरकार की चिंता यह है कि यदि देश के सबसे विश्वसनीय व्यापारिक घराने में आंतरिक कलह बढ़ती है, तो इसका असर बाजार के भरोसे और भारतीय कॉरपोरेट गवर्नेंस मॉडल पर पड़ेगा।


एन. चंद्रशेखरन का रुख

एन. चंद्रशेखरन फिलहाल निष्पक्ष रुख अपनाए हुए हैं और हाल ही में उनका कार्यकाल पांच साल के लिए बढ़ाया गया है। वे सतर्कता से कदम बढ़ा रहे हैं ताकि समूह की छवि पर कोई आंच न आए।


भविष्य की दिशा

टाटा समूह का यह विवाद केवल आंतरिक शक्ति संघर्ष नहीं है, बल्कि यह संगठनात्मक संरचना और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। जानकारों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह संघर्ष तय करेगा कि टाटा समूह परंपरा की राह पर चलेगा या बदलाव के नए रास्ते पर।