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डोनाल्ड ट्रंप के निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

डोनाल्ड ट्रंप के हालिया निर्णयों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाला है। जनवरी में राष्ट्रपति बनने के बाद, उन्होंने नई टैरिफ दरें लागू कीं, जिससे कई कंपनियों को दिवालिया होने की नौबत आई। 2025 की पहली छमाही में 371 बड़ी कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं, जो पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। इस लेख में जानें कि कैसे ट्रंप के फैसले और रूस से कच्चा तेल खरीदने के मुद्दे ने व्यापार को प्रभावित किया है।
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डोनाल्ड ट्रंप के निर्णयों का अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

2025 की पहली छमाही में दिवालिया कंपनियों की संख्या


2025 की पहली छमाही में 371 बड़ी कंपनियां हुईं दिवालिया


बिजनेस डेस्क : जब डोनाल्ड ट्रंप जनवरी में अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने जनता को एक सुनहरे भविष्य का आश्वासन दिया। अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही, ट्रंप ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। फरवरी में, उन्होंने सभी प्रमुख देशों पर नई टैरिफ दरें लागू करने की घोषणा की, जो काफी ऊँची थीं। इससे वैश्विक आर्थिक मंदी की आशंका बढ़ गई। विशेषज्ञों की सलाह पर, ट्रंप ने इन दरों को 90 दिनों के लिए स्थगित कर दिया।


अमेरिकी कंपनियों पर प्रभाव

हालांकि, फरवरी में टैरिफ पर रोक लगाने के बावजूद, उन अमेरिकी कंपनियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा जो उन देशों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार कर रही थीं, जिन पर उच्च टैरिफ लगाए गए थे। इससे व्यापार में हड़कंप मच गया। इस साल अब तक अमेरिका में 446 बड़ी कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं, जो 2020 में कोरोना काल के आंकड़ों से 12 प्रतिशत अधिक है। जुलाई में, 71 बड़ी कंपनियां दिवालिया हुईं, जो जुलाई 2020 के बाद किसी एक महीने में दिवालिया होने वाली कंपनियों की सबसे बड़ी संख्या है।


नए टैरिफ का प्रभाव

अप्रैल में, ट्रंप ने विदेशी सामान पर 10% टैरिफ लगाया। इस महीने से दिवालिया होने वाली कंपनियों की संख्या में तेजी आई। 2025 की पहली छमाही में 371 बड़ी अमेरिकी कंपनियां दिवालिया हुईं। जून में, 63 कंपनियों ने बैंकरप्सी के लिए आवेदन किया। इस साल दिवालिया होने वाली कंपनियों में 1990 और 2000 के दशक के कई प्रसिद्ध ब्रांड शामिल हैं।


भारत का रूस से कच्चा तेल खरीदना

इस बीच, भारत के रूस से कच्चा तेल खरीदने से अमेरिका नाराज है और उसने भारत पर भारी टैरिफ लगाए हैं ताकि वह रूस से कच्चा तेल न खरीदे। लेकिन रूस का कहना है कि उसके कच्चे तेल का कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि यह बहुत सस्ता है। सीनियर रूसी डिप्लोमेट रोमन बाबुश्किन ने कहा कि भारत के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण स्थिति है, लेकिन हमें अपने रिश्तों पर भरोसा है। उन्होंने यह भी कहा कि अगर भारतीय सामान अमेरिकी बाजार में नहीं जा सकते, तो वे रूस की ओर जा सकते हैं।