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धान की फसल में उर्वरक का सही उपयोग: वैज्ञानिक तरीके से जानें

धान की फसल में उर्वरक का सही उपयोग फसल की गुणवत्ता और उपज को बढ़ाने में महत्वपूर्ण है। जानें कैसे मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक की सही मात्रा निर्धारित करें और किस प्रकार से इसे सही समय पर प्रयोग करें। इस लेख में हम आपको वैज्ञानिक तरीके से उर्वरक के उपयोग के बारे में जानकारी देंगे, जिससे आप अपनी फसल को बेहतर बना सकते हैं।
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धान की फसल में उर्वरक का सही उपयोग: वैज्ञानिक तरीके से जानें

धान की फसल में उर्वरक का सही प्रयोग

धान की फसल में उर्वरक का सही प्रयोग: उर्वरक का गलत उपयोग फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। जिला कृषि अधिकारी सोम प्रकाश गुप्ता ने बताया कि किसान अक्सर बिना सोच-समझ के अधिक उर्वरक का प्रयोग करते हैं। इससे न केवल फसल की गुणवत्ता में कमी आती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी प्रभावित होती है। सही मात्रा और समय पर उर्वरक देने से धान की उपज में काफी सुधार होता है।


धान की खेती में तीन मुख्य उर्वरक आवश्यक होते हैं—(धान में नाइट्रोजन), (धान के लिए फास्फोरस), और (धान के लिए पोटाश)। प्रति हेक्टेयर औसतन 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। हालांकि, यह मात्रा मिट्टी की गुणवत्ता और फसल की किस्म पर निर्भर करती है।


मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक की मात्रा निर्धारित करें


किसानों को सलाह दी जाती है कि वे मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक की योजना बनाएं। इससे खेत की वास्तविक जरूरत के अनुसार पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। धान की नर्सरी में प्रति एकड़ 10 किलोग्राम यूरिया का उपयोग करें। रोपाई के समय फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बेसल डोज़ के रूप में दें।


बची हुई नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटकर पहली बार रोपाई के 20-25 दिन बाद और दूसरी बार 40-45 दिन बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में दें। यह प्रक्रिया (धान की टॉप ड्रेसिंग) उपज बढ़ाने में सहायक होती है।


सिंचाई के बाद यूरिया का छिड़काव करें


(धान के लिए मृदा परीक्षण) के अनुसार उर्वरक का उपयोग करने से पौधों की जड़ों तक पोषक तत्व आसानी से पहुंचते हैं। यूरिया का छिड़काव वर्षा से पहले या सिंचाई के तुरंत बाद करें, ताकि नाइट्रोजन का नुकसान न हो। उर्वरक को हमेशा मिट्टी में मिलाकर दें, जिससे पौधों को पूरा लाभ मिल सके।


वैज्ञानिक सलाह के अनुसार प्रति एकड़ 4 किलोग्राम उर्वरक का प्रयोग पर्याप्त होता है। इससे लागत कम होती है और उपज अधिक मिलती है। (संतुलित उर्वरक का उपयोग) से न केवल फसल स्वस्थ रहती है, बल्कि किसान को आर्थिक लाभ भी होता है।