न्यूजीलैंड और भारत के बीच मुक्त व्यापार समझौते में जीआई पंजीकरण की नई पहल
न्यूजीलैंड का नया कदम
न्यूजीलैंड ने भारत के साथ अपने मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के तहत एक महत्वपूर्ण प्रतिबद्धता की है। इस समझौते के लागू होने के 18 महीनों के भीतर, न्यूजीलैंड अपने कानून में संशोधन करेगा, जिससे भारतीय वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (जीआई) पंजीकरण को वाइन और स्पिरिट के अलावा सुगम बनाया जा सकेगा।
वर्तमान में, न्यूजीलैंड का जीआई कानून केवल भारत की वाइन और स्पिरिट के पंजीकरण की अनुमति देता है। जीआई एक प्रकार का बौद्धिक संपदा अधिकार है।
जीआई का महत्व
जीआई मुख्य रूप से एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न कृषि, प्राकृतिक या विनिर्मित उत्पादों को दर्शाता है। आमतौर पर, जीआई दर्जे वाला उत्पाद उसकी गुणवत्ता और विशिष्टता को दर्शाता है, जो उसके उत्पत्ति स्थान से संबंधित होता है।
एक बार जब किसी उत्पाद को जीआई का दर्जा मिल जाता है, तो कोई भी व्यक्ति या कंपनी उस नाम से समान वस्तु नहीं बेच सकती है। इसके अन्य लाभों में कानूनी संरक्षण, अनधिकृत उपयोग की रोकथाम और निर्यात को बढ़ावा देना शामिल है।
भारत के लिए अवसर
भारत के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि वाइन, स्पिरिट और अन्य वस्तुओं के पंजीकरण को सुगम बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई गई है। यह लाभ न्यूजीलैंड ने पहले यूरोपीय संघ (ईयू) को भी दिया है।
मंत्रालय ने यह भी बताया कि समझौते के लागू होने के 18 महीने के भीतर यह प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।
दोनों देशों ने सोमवार को एफटीए वार्ता के समापन की घोषणा की। समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद इसे लागू करने में लगभग सात से आठ महीने का समय लग सकता है।
जीआई दर्जे वाली प्रमुख वस्तुओं में बासमती चावल, दार्जिलिंग चाय, चंदेरी कपड़ा, मैसूर रेशम, कुल्लू शॉल, कांगड़ा चाय, तंजावुर पेंटिंग्स, इलाहाबाद सुरखा, फर्रुखाबाद प्रिंट्स, लखनऊ जरदोजी और कश्मीर अखरोट की लकड़ी की नक्काशी शामिल हैं।
