भारत के विकास में कृत्रिम मेधा का महत्व: वित्त मंत्री का दृष्टिकोण
कृत्रिम मेधा का उपयोग और विकास की दिशा
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारत के वित्तीय ढांचे को सुदृढ़ करने और शासन को सरल बनाने के लिए कृत्रिम मेधा (एआई) के उपयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
उन्होंने कर्नाटक के विजयनगर जिले में वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के चिंतन शिविर की अध्यक्षता की। इस दिनभर चले कार्यक्रम में नीतिगत दृष्टिकोण को विकसित भारत के लक्ष्य के साथ जोड़ने पर चर्चा की गई।
चिंतन शिविर में चर्चा के मुख्य बिंदु
वरिष्ठ अधिकारियों ने वित्तीय बाजारों को मजबूत करने, व्यापार में आसानी लाने और उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर विचार-विमर्श किया। इसके साथ ही, निरीक्षण और जवाबदेही बनाए रखने के उपायों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।
सीतारमण ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा कि चिंतन शिविर उच्च स्तरीय सोच का एक मंच है, जिससे नीतियों को विकसित कर भारत को तेजी से विकसित राष्ट्र की ओर ले जाया जा सकता है।
समूह चर्चा और सुझाव
यह चिंतन शिविर केंद्रीय कॉर्पोरेट मामलों के राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा की उपस्थिति में आयोजित हुआ, जिसमें वित्त मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया। चर्चाओं को तीन प्रमुख समूहों में बांटा गया: विकसित भारत के लिए वित्तीय प्रबंधन, व्यापार में सुगमता, और कृत्रिम मेधा का उपयोग।
वित्तीय प्रबंधन पर चर्चा में प्रतिभागियों ने राज्यों और नगरपालिकाओं को सशक्त बनाने, कॉर्पोरेट बॉण्ड बाजार को मजबूत करने, डिजिटल ऋण को बढ़ावा देने और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
व्यापार में सुगमता और शासन सुधार
व्यापार में सुगमता पर चर्चा में सरल कानून, कम नियम-कानून लागत, विवादों का त्वरित समाधान और विश्वास-आधारित प्रणालियों को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया। सीतारमण ने कहा कि शासन सुधार को सुविधाजनक और विश्वास-आधारित प्रशासन पर आधारित होना चाहिए।
प्रौद्योगिकी, विशेषकर एआई के उपयोग पर, वित्त मंत्री ने कहा कि यह शासन में सहायक और रणनीतिक उपकरण के रूप में कार्य कर सकता है।
2047 तक समृद्ध भारत का लक्ष्य
सीतारमण ने 2047 तक भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाने की आकांक्षा को दोहराते हुए सभी प्रतिभागियों से इस दिशा में सक्रिय योगदान देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि स्थायी समृद्धि प्राप्त करना आवश्यक है, क्योंकि यही गरीबी और असमानता को कम करने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने का आधार है।
