भारत ने ब्रिक्स में आतंकवाद और ईरान-इजरायल संघर्ष पर स्पष्ट रुख पेश किया

ब्रिक्स में भारत का स्पष्ट रुख
नई दिल्ली: भारत ने ब्रिक्स में आतंकवाद, ईरान-इजरायल संघर्ष और वैश्विक दक्षिण के मुद्दों पर अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है। विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित एक प्रेस ब्रीफिंग में सचिव (आर्थिक संबंध) दम्मू रवि ने बताया कि प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स में भारत की मजबूत नीति को विश्व के सामने रखा।
उन्होंने पहलगाम और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर भारत के दृष्टिकोण को उजागर किया। ईरान-इजरायल संघर्ष पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "संदेश स्पष्ट है कि कूटनीतिक बातचीत ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।"
दम्मू रवि ने बताया कि पैरा 34 में कुछ महत्वपूर्ण बातें स्पष्ट की गई हैं। सबसे पहले, सभी देशों ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की है। यह निंदा न केवल आतंकवादी हमलों के लिए है, बल्कि उन देशों, संगठनों या व्यक्तियों के लिए भी है जो आतंकवाद को किसी भी रूप में समर्थन, फंडिंग या शरण देते हैं।
उन्होंने यह भी बताया कि बैठक में सीमा पार से होने वाली आतंकवादी गतिविधियों और इसमें शामिल समूहों का स्पष्ट उल्लेख किया गया। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद का दृढ़ता से सामना कर रहा है। दम्मू रवि ने यह भी कहा कि भारत वर्षों से संयुक्त राष्ट्र में "अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ व्यापक कन्वेंशन" की पहल करता रहा है।
इस कन्वेंशन का उद्देश्य वैश्विक स्तर पर आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा तय करना और सभी देशों को इसके खिलाफ एकजुट करना है।
उन्होंने इंटर-ट्रेडिंग संबंधों पर भी विचार साझा किए। दम्मू रवि ने कहा कि ब्रिक्स वैश्विक दक्षिण देशों का प्रतिनिधित्व करता है, और इसमें विविधताएं हैं। इसलिए, देश विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। सीमा पार व्यापार के लिए अंतर-संचालनीय भुगतान (इंटर ऑपरेबल पेमेंट) का तंत्र तेजी से लागू किया गया है, और हम कई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यवस्था में भी प्रवेश कर रहे हैं।
इस पर देशों के भीतर चर्चा चल रही है। हमें उम्मीद है कि निकट भविष्य में बातचीत होगी और देश इसे स्वीकार करेंगे, क्योंकि यह अधिकांश के लिए लाभकारी है।
दम्मू ने प्रधानमंत्री के संबोधन का उल्लेख करते हुए कहा, "प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन में कहा कि 20वीं सदी के वैश्विक संगठनों में 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने की क्षमता नहीं है, इसलिए उन्होंने बहुपक्षीय संगठनों में सुधार के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने एक बहुध्रुवीय, समावेशी विश्व व्यवस्था का आह्वान किया और कहा कि वैश्विक शासन संस्थाओं, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, आईएमएफ, विश्व बैंक और डब्ल्यूटीओ को समकालीन वास्तविकताओं के अनुसार सुधार करना चाहिए।"