भारत में जेंडर पे गैप: सर्वे से सामने आई कड़वी सच्चाई

जेंडर पे गैप का खुलासा
क्या आपको लगता है कि आज के समय में लड़के और लड़कियां समान हैं और कार्यस्थल पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता? यदि हां, तो Naukri.com द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण ने इस धारणा को चुनौती दी है। इस सर्वे ने भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में 'जेंडर पे गैप' का कड़वा सच उजागर किया है। सर्वे में शामिल 45% कर्मचारियों का मानना है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में समान कार्य के लिए 20% कम वेतन मिलता है।इस असमानता के पीछे दो प्रमुख कारण हैं, जो हमारी सामाजिक सोच पर सवाल उठाते हैं। पहला बड़ा कारण है 'मदरहुड पेनल्टी'। सर्वे में 51% प्रतिभागियों ने कहा कि जब एक महिला मातृत्व अवकाश लेती है, तो उसके करियर में गिरावट आ जाती है। जब वह कुछ महीनों बाद लौटती है, तो उसके पुरुष सहकर्मी प्रमोशन प्राप्त कर चुके होते हैं। उसे 'कम समर्पित' समझा जाता है, जिससे उसकी वेतन वृद्धि रुक जाती है। यह समस्या विशेष रूप से आईटी (56%), फार्मा (55%) और ऑटोमोबाइल (53%) क्षेत्रों में अधिक देखी जाती है।
दूसरा कारण है कार्यस्थल पर छिपा भेदभाव। 27% लोगों ने माना कि महिलाओं के प्रति एक अदृश्य भेदभाव मौजूद है, जो उनकी क्षमताओं को पुरुषों की तुलना में कम आंकता है। यह भेदभाव विशेष रूप से आईटी क्षेत्र में अधिक प्रचलित है, खासकर हैदराबाद (59%) और बेंगलुरु (58%) जैसे शहरों में।
इस भेदभाव को समाप्त करने के लिए लोगों ने तीन मुख्य सुझाव दिए हैं: पहला, प्रमोशन का आधार केवल प्रदर्शन होना चाहिए, न कि जेंडर। दूसरा, भर्ती प्रक्रिया को पूरी तरह से पारदर्शी और भेदभाव-मुक्त होना चाहिए। तीसरा, वेतन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना चाहिए, जिससे भेदभाव अपने आप कम हो जाएगा।