भारत-रूस संबंधों में चावल का व्यापार: एक नई शुरुआत
भारत और रूस के बीच बढ़ते संबंध
दुनिया के कूटनीतिक परिवेश में भारत और रूस के संबंधों पर कई चर्चाएँ होती रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती नज़दीकियों और यूक्रेन संघर्ष के चलते भारत-रूस संबंधों में कुछ कमी आई है। हालांकि, हाल के घटनाक्रम इस धारणा को चुनौती देते हैं, जहां चावल की खेपों ने एक नई कहानी बयां की है।भारत द्वारा रूस को निरंतर चावल की खेपें भेजने से यह स्पष्ट होता है कि पुराने मित्रों को भुलाया नहीं जाता। रूस के कैलिनिनग्राद क्षेत्र में भेजे गए चावल ने वहां की आवश्यकताओं को पूरा किया और यह संकेत दिया कि भारत अपने रणनीतिक साझेदारों के साथ खड़ा है।
पिछले कुछ महीनों में, भारत ने कैलिनिनग्राद को लगभग 125 टन चावल की पांच खेपें भेजी हैं, जिससे कुल मात्रा जनवरी 2025 से अब तक 390 टन तक पहुँच गई है, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग 4.7 लाख डॉलर है।
इस समय रूस पश्चिमी प्रतिबंधों और आपूर्ति श्रृंखला की चुनौतियों का सामना कर रहा है। ऐसे में भारत द्वारा समय पर खाद्यान्न की आपूर्ति न केवल व्यापारिक समझदारी को दर्शाती है, बल्कि यह दोस्ती की मिसाल भी है। रूसी मीडिया ने भी भारत की भूमिका की सराहना की है।
एक समाचार पत्र ने भारत को "सच्चा मित्र" बताते हुए लिखा कि भारत की मदद से रूस के खाद्य आयात का प्रवाह संतुलित बना हुआ है।
भारतीय बासमती चावल की सुगंध और विशेषताएँ रूस में लोकप्रिय हो गई हैं। हेल्थ-कॉन्शियस उपभोक्ताओं की बढ़ती संख्या के साथ, बासमती की मांग भी तेजी से बढ़ी है। इसका कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और उच्च फाइबर सामग्री इसे स्वास्थ्य के लिए एक बेहतरीन विकल्प बनाती है।
2022 में भारत ने रूस को 2.1 मिलियन टन चावल निर्यात किया, जिसकी कुल कीमत लगभग 56 मिलियन डॉलर थी। 2023-24 के बीच बासमती चावल की 1,482 खेपें भेजी गईं, जो सालाना लगभग 10% की वृद्धि को दर्शाती हैं।
यह चावल व्यापार केवल खाद्य आपूर्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक गहरे रिश्ते की पुष्टि भी करता है, जिसे दशकों की साझेदारी और विश्वास ने सींचा है।