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शेयर बाजार में भारी गिरावट: निवेशकों की चिंता बढ़ी, कच्चे तेल और सोने की कीमतें चढ़ीं

शेयर बाजार में भारी गिरावट ने निवेशकों को चिंता में डाल दिया है, सेंसेक्स और निफ्टी में बड़ी गिरावट आई है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और सोने की कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने से महंगाई की आशंका बढ़ गई है। रुपये की कमजोरी और डॉलर की मजबूती ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है। जानें इस आर्थिक संकट के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
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शेयर बाजार में भारी गिरावट: निवेशकों की चिंता बढ़ी, कच्चे तेल और सोने की कीमतें चढ़ीं

शेयर बाजार में गिरावट का आलम

Business News:  जैसे ही शेयर बाजार ने सुबह की शुरुआत की, निवेशकों में हड़कंप मच गया। सेंसेक्स 1300 अंकों से अधिक गिर गया, जबकि निफ्टी ने 415 अंकों की कमी दर्ज की। चारों ओर बेचैनी का माहौल था, हर जगह लाल रंग की चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। अरबों रुपये का वाष्पीकरण हो गया, जैसे सपने चुराए जाते हैं। जिन शेयरों को पहले सुरक्षित माना जाता था, वे सबसे पहले गिरने लगे। ब्रोकरेज हाउसों में अफरातफरी मच गई, फोन लगातार बजते रहे और ट्रेडिंग टर्मिनल्स पर उंगलियां कांपने लगीं। छोटे निवेशक घबराए हुए थे, जैसे किसी तूफान में कागज़ की नाव। यह केवल एक आर्थिक झटका नहीं था, बल्कि उस विश्वास की नींव पर गहरी दरार थी, जिस पर देश का मध्यम वर्ग अपनी उम्मीदें टिकाए बैठा था।


कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि

कच्चा तेल हुआ और महंगा

इजराइल द्वारा ईरान पर हमले के कारण मध्य पूर्व में तेल आपूर्ति बाधित होने का खतरा बढ़ गया है। ब्रेंट क्रूड की कीमतें 78.50 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई हैं, जो पिछले दो महीनों का उच्चतम स्तर है। भारत, जो अपनी आवश्यकताओं का 85% तेल आयात करता है, को इससे बड़ा झटका लगा है। अब सरकार पर सब्सिडी का दबाव बढ़ेगा और आम आदमी पर महंगाई का असर होगा। तेल कंपनियां कीमतें बढ़ाने की तैयारी में हैं। ट्रांसपोर्ट से लेकर खाद्य वस्तुओं तक हर चीज पर इसका असर पड़ेगा। यदि पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें बढ़ती हैं, तो महंगाई की लहर देशभर में फैल सकती है। यह केवल शुरुआत हो सकती है।


सोने की कीमतों में उछाल

महंगाई की और बड़ी चोट: गोल्ड रिकॉर्ड स्तर पर

लोगों ने सुरक्षित निवेश के लिए फिर से सोने की ओर रुख किया है। घरेलू बाजार में एमसीएक्स पर सोने की कीमत 1,00,403 रुपये प्रति 10 ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है। केवल जून महीने में सोने की कीमतों में 4,500 रुपये से अधिक का उछाल आया है। यह उन परिवारों के लिए चिंता का विषय है, जहां शादी या कोई बड़ा समारोह नजदीक है। महिलाओं के लिए यह भावनात्मक झटका है, जिनकी उम्मीदें कीमतों में गिरावट से थीं। अब गहने खरीदना आम परिवारों के बजट से बाहर होता जा रहा है। सोने की महंगाई का सीधा मतलब है कि दुनिया में डर बढ़ा है। जब डर बढ़ता है, तो निवेशक गोल्ड की ओर दौड़ते हैं।


रुपये की गिरावट और डॉलर की मजबूती

रुपया धराशायी, डॉलर हुआ मजबूत

शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 56 पैसे गिरकर 86.08 के स्तर पर आ गया। विदेशी निवेशकों की बिकवाली और कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि से रुपये पर दबाव बना। डॉलर इंडेक्स में भी मजबूती आई, जिससे रुपये की स्थिति और कमजोर हुई। रुपये की कमजोरी का मतलब है कि विदेश से आयात महंगा होगा और महंगाई बढ़ेगी। भारत का व्यापार घाटा भी बढ़ सकता है। आयात करने वाली कंपनियों पर लागत का भारी बोझ पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप मोबाइल, कारें और यहां तक कि दवाइयां भी महंगी हो सकती हैं। यह गिरावट केवल मुद्रा की नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की भी है।


शेयर बाजार में तबाही का मंजर

शेयर बाजार में तबाही

बीएसई सेंसेक्स कारोबार के दौरान 1337 अंक गिरकर 80,354 पर पहुंच गया। निफ्टी भी 415 अंक गिरकर 24,473 तक लुढ़क गया। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह युद्ध लंबा खिंचता है, तो बाजार और नीचे जा सकता है। एविएशन, ऑटो और पेंट सेक्टर सबसे अधिक प्रभावित हो सकते हैं। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में भारी नुकसान झेल रहे हैं। ब्रोकरेज हाउसों में तनाव है और ट्रेडिंग फ्लोर पर सन्नाटा छाया हुआ है। IPO मार्केट भी ठंडा पड़ने की आशंका है। म्यूचुअल फंड के निवेशक भी घबराहट में हैं। यह गिरावट केवल आंकड़ों की नहीं, बल्कि उम्मीदों की भी है।


बॉन्ड बाजार में तनाव का असर

बॉन्ड बाजार में भी बढ़ा तनाव

कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से सरकार के बॉन्ड बाजार पर भी असर पड़ा है। यील्ड पांच हफ्ते के उच्च स्तर पर पहुंच गई है। निवेशकों ने महंगाई बढ़ने की आशंका में सुरक्षित निवेश की ओर रुख किया है। सरकारी कर्ज की लागत भी बढ़ सकती है। इजराइल और ईरान के बीच सैन्य टकराव केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहा। यह संकट वैश्विक निवेश के मूड को भी बदल सकता है। एफआईआई भारत जैसे बाजार से दूरी बना सकते हैं। बजट प्रबंधन में सरकार को नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। बैंकों की ब्याज दरें और लोन की लागत प्रभावित हो सकती है। और हर मोर्चे पर आम आदमी की जेब हल्की होती जा रही है।