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सर्दियों में अंडों की कीमतों में वृद्धि: जानें इसके पीछे के कारण

इस सर्दी में अंडों की कीमतों में वृद्धि ने आम लोगों के बजट पर गहरा प्रभाव डाला है। जानें कि क्यों अंडों की कीमतें इतनी अधिक हैं और कब तक ये ऊंची बनी रहेंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जनवरी तक कीमतें मजबूत रहेंगी, लेकिन फरवरी में कुछ राहत मिल सकती है। जानें इसके पीछे के कारण और भविष्य की संभावनाएं।
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सर्दियों में अंडों की कीमतों में वृद्धि: जानें इसके पीछे के कारण

अंडों की बढ़ती कीमतों का असर


नई दिल्ली: इस सर्दी में अंडों की कीमतों में वृद्धि ने आम लोगों के बजट पर गहरा प्रभाव डाला है। देश के कई प्रमुख शहरों में अंडों की कीमत 8 रुपये या उससे अधिक हो गई है, जिससे उपभोक्ताओं के मन में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर ये कीमतें इतनी अधिक क्यों हैं और कब तक बनी रहेंगी।


अंडों की कीमतों में राहत की संभावना

विशेषज्ञों का मानना है कि अंडों की कीमतों में जल्द ही कोई बड़ी राहत मिलने की उम्मीद नहीं है। जब कीमतें गिरेंगी, तो भी यह गिरावट सीमित रहने की संभावना है। इसके पीछे मांग, आपूर्ति और उत्पादन लागत से जुड़े कई महत्वपूर्ण कारण हैं।


सर्दियों में अंडों की मांग में वृद्धि

भारत में हर साल दिसंबर से जनवरी के बीच अंडों की खपत अपने उच्चतम स्तर पर होती है। ठंड के मौसम में लोग प्रोटीन युक्त भोजन को प्राथमिकता देते हैं। इस दौरान स्कूल, हॉस्टल, ढाबे और छोटे होटल भी अधिक अंडों की खपत करते हैं।


आंकड़ों के अनुसार, जनवरी के अंत तक मांग ऊंची बनी रहती है। फरवरी में तापमान बढ़ने के साथ खपत सामान्य होने लगती है, जिससे कीमतों में नरमी आती है। इस बार भी यही स्थिति है, लेकिन कीमतें पहले से ही ऊंचे स्तर पर हैं।


सप्लाई में सुधार, लेकिन मांग के मुकाबले कम

पिछले वर्ष की तुलना में अंडों की आपूर्ति में सुधार हुआ है, लेकिन यह मांग के अनुपात में पर्याप्त नहीं है। पोल्ट्री उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले दो वर्षों में लगातार नुकसान के कारण कई छोटे पोल्ट्री फार्म बंद हो गए हैं।


पोल्ट्री उत्पादन एक लंबी प्रक्रिया है, जिसे फिर से शुरू करना आसान नहीं है। इस कारण किसान उत्पादन बढ़ाने में सतर्कता बरत रहे हैं, जिससे सप्लाई बढ़ने के बावजूद कीमतों पर दबाव बना हुआ है।


उत्पादन लागत का प्रभाव

अंडों की कीमतों में गिरावट न आने का एक बड़ा कारण उत्पादन लागत है। पोल्ट्री फीड के मुख्य घटक जैसे मक्का और सोयाबीन की कीमतें पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ी हैं। मौसम की मार और इनपुट लागत में वृद्धि इसका कारण है।


कुल लागत का 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सा फीड पर खर्च होता है। उद्योग के अनुसार, 6.5 से 7 रुपये प्रति अंडा की कीमत कई किसानों के लिए घाटे का सौदा है। ऐसे में मांग घटने के बावजूद कीमतों में बड़ी गिरावट की संभावना कम है।


ट्रांसपोर्ट और राज्यों पर निर्भरता

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पूर्वी भारत के कई क्षेत्र अंडों की आपूर्ति के लिए दक्षिण और पश्चिमी राज्यों पर निर्भर हैं। लंबी दूरी के ट्रांसपोर्ट और लॉजिस्टिक्स के कारण प्रति अंडा 20 से 40 पैसे की अतिरिक्त लागत जुड़ जाती है।


इस कारण थोक बाजारों में कीमतें घटने के बावजूद खुदरा स्तर पर असर देर से दिखता है।


थोक बाजार की स्थिति

नेशनल एग कोऑर्डिनेशन कमेटी के आंकड़ों के अनुसार, नमक्कल और होस्पेट जैसे प्रमुख केंद्रों में थोक कीमतें ऊंची हैं, लेकिन स्थिर बनी हुई हैं। इसका मतलब है कि कीमतों में तेज उछाल की संभावना कम है, जब तक कोई नई समस्या सामने न आए।


अंडों की कीमतों में भविष्य की संभावनाएं

पोल्ट्री विशेषज्ञों का मानना है कि जनवरी तक अंडों के दाम मजबूत बने रहेंगे। फरवरी में कुछ राहत मिल सकती है, लेकिन 5 या 6 रुपये प्रति अंडा जैसे पुराने स्तर पर लौटना मुश्किल है।


इस सर्दी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अंडे अब भी अन्य प्रोटीन स्रोतों की तुलना में सस्ते हैं, लेकिन बेहद सस्ते अंडों का दौर शायद अब समाप्त हो चुका है। फिलहाल, ठंड के मौसम में अंडे महंगे रहेंगे और जब कीमतें गिरेंगी, तो धीरे-धीरे।