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ट्रेन के इंजन में शौचालय की अनुपस्थिति: लोको पायलट्स की चुनौतियाँ

ट्रेन यात्रा के दौरान शौचालय की आवश्यकता और लोको पायलट्स की चुनौतियों पर एक नजर। जानें कि कैसे ट्रेन के इंजन में शौचालय की अनुपस्थिति उनके लिए कठिनाइयाँ पैदा करती है। यह लेख आपको लोको पायलट्स की अनदेखी समस्याओं के बारे में जागरूक करेगा।
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ट्रेन यात्रा में शौचालय की आवश्यकता

हम में से कई लोग ट्रेन यात्रा के दौरान कोच के शौचालयों का उपयोग कर चुके हैं, विशेषकर लंबी दूरी की ट्रेनों में। लेकिन एक सवाल जो अक्सर नहीं उठता है, वह यह है कि ट्रेन के इंजन वाले डिब्बे में शौचालय क्यों नहीं होता। इस प्रश्न का उत्तर हमें लोको पायलट्स की दुनिया में ले जाता है, जिनकी समस्याएँ अक्सर अनदेखी रह जाती हैं।


ट्रेन का इंजन, जिसे लोकोमोटिव कहा जाता है, एक सीमित स्थान होता है। इसमें केवल आवश्यक मशीनरी, नियंत्रण प्रणाली और लोको पायलट के बैठने की जगह होती है। इसका डिज़ाइन तकनीकी संचालन पर केंद्रित होता है, न कि मानव सुविधाओं पर। इंजन के हर इंच की जगह महत्वपूर्ण होती है, चाहे वह मशीन के पुर्जों के लिए हो या आपात स्थिति में निकलने के लिए। इसलिए, शौचालय जैसी सुविधाओं को अक्सर "गैर-ज़रूरी" मानकर छोड़ दिया जाता है।


लोको पायलट्स की कठिनाइयाँ

कल्पना कीजिए कि एक लोको पायलट को 6 से 8 घंटे नहीं, बल्कि कई बार 10-12 घंटे तक ट्रेन चलानी होती है, बिना किसी ब्रेक के। इस दौरान उनके पास शौच जाने की कोई सुविधा नहीं होती। विशेष रूप से महिला लोको पायलट्स के लिए यह स्थिति और भी कठिन होती है। कई बार पायलट अपनी ड्यूटी के दौरान पानी पीने से भी बचते हैं।


जब शौच की आवश्यकता होती है, तो उन्हें असहनीय दर्द सहना पड़ता है। वे समय पर खाना नहीं खा पाते, ताकि पेट की समस्याओं से बच सकें। यह एक शारीरिक और मानसिक तनाव है, जिस पर शायद ही कभी चर्चा होती है।


आपको जानकर आश्चर्य होगा कि कई बार लोको पायलट्स को ड्यूटी के दौरान खाना खाने की अनुमति नहीं होती। यदि ट्रेन किसी हाई स्पीड ज़ोन में है या लगातार स्टेशनों को पार कर रही है, तो पायलट को पूरी तरह सतर्क रहना होता है। इस दौरान खाना खाने का मतलब है ध्यान भटकाना, जो ट्रेन संचालन में गंभीर गलती हो सकती है। कुछ पायलट्स कहते हैं कि वे ड्यूटी शुरू करने से पहले ही पेट भरकर खाना खाते हैं, ताकि बीच में भूख न लगे। लेकिन सोचिए, गर्मी, ठंड या बारिश में 10 घंटे तक भूखे रहकर ट्रेन चलाना कितना कठिन होगा।