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भारत की शिक्षा प्रणाली: मैकाले की विरासत और आधुनिक चुनौतियाँ

इस लेख में भारत की शिक्षा प्रणाली पर मैकाले के प्रभाव का गहन विश्लेषण किया गया है। यह बताया गया है कि कैसे मैकाले की विरासत आज भी हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रही है। क्या हम एक नई और बेहतर शिक्षा प्रणाली की ओर बढ़ सकते हैं? जानें इस लेख में।
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भारत की शिक्षा प्रणाली: मैकाले की विरासत और आधुनिक चुनौतियाँ

मैकाले की शिक्षा प्रणाली का प्रभाव

भारत की एकमात्र 'अनलूटेबल' संपत्ति वह पतली परत है—अंग्रेज़ी में दक्ष और विश्लेषणात्मक रूप से प्रशिक्षित दिमाग़ों की—जिसे मैकाले ने स्थापित किया। अन्य संसाधन जैसे कोयला, खनिज और नदियाँ हमने चुराए, बर्बाद किए या उन्हें लाल फ़ीते में बांध दिया। इसके बावजूद, हमने इस संपत्ति के साथ क्या किया? लगभग कुछ नहीं—बल्कि उल्टा किया।


मैकाले की शिक्षा प्रणाली की आलोचना

एक कड़वा सच यह है कि आधुनिक भारत आज भी उसी शिक्षा प्रणाली पर निर्भर है, जिसे 1835 में थॉमस बैबिंगटन मैकाले ने स्थापित किया था। यह कोई साधारण तर्क नहीं, बल्कि एक कठोर वास्तविकता है। आईटी एक्सपोर्ट से लेकर फार्मा पेटेंट तक, भारत की आधुनिक मशीनरी का लगभग 80% इंजन उसी अंग्रेज़ी शिक्षा से चलता है।


आर्थिक असमानता और शिक्षा

भारत की प्रति व्यक्ति आय आज भी बोत्सवाना और गैबन जैसे देशों से कम है, जो प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर हैं। इसके विपरीत, हम मानव प्रतिभा पर टिके हैं। मैकाले के आलोचक यह सही कहते हैं कि यह शिक्षा प्रणाली नवोन्मेषी दिमाग़ नहीं बनाती, बल्कि एक क्लर्की जाति का निर्माण करती है।


मैकाले की विरासत का मूल्यांकन

यदि मैकाले की प्रशासनिक रीढ़ न होती, तो 1947 में भारत एक गणराज्य के रूप में एकसाथ खड़ा नहीं हो पाता। हमारे पास औद्योगिक कल्पनाएँ लिखने वाले अभियंता और वैज्ञानिक नहीं होते। गणतंत्र दिवस पर जो भी उपलब्धियाँ हम मनाते हैं, उनके पीछे वही लोग हैं जिन्हें मैकाले ने अपनी 'प्रशासकीय जाति' के लिए कल्पना की थी।


शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता

हमारे शिक्षा बजट का अधिकांश हिस्सा इमारतों और वेतन में खर्च होता है, जबकि सीखने-सिखाने में नहीं। यदि प्रधानमंत्री मोदी वास्तव में मैकाले को 'दफ़नाना' चाहते हैं, तो उन्हें एक बेहतर प्रणाली विकसित करनी होगी।


भविष्य की दिशा

भारत को अब यह साहस जुटाना होगा कि वह मैकाले को उसकी ही ज़मीन पर मात दे। यह चुनाव केवल मैकाले बनाम किसी खोई हुई 'पवित्र भारतीय' शिक्षा प्रणाली का नहीं है, बल्कि यह है कि क्या हम उत्कृष्टता को लोकतांत्रिक बनाकर हर बच्चे का अधिकार बनाएंगे।