वंदे मातरम्: भारतीय संस्कृति का प्रतीक और स्वतंत्रता संग्राम की आवाज
वंदे मातरम् का महत्व
नई दिल्ली: भारत का राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम्' न केवल आजादी के संघर्ष का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इसके 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर लोकसभा में एक विशेष सत्र का आयोजन किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस गीत पर चर्चा की शुरुआत करेंगे। हालांकि, कई लोग अब भी इसके अर्थ, रचना का समय और भारतीय इतिहास में इसके महत्व को नहीं जानते हैं।
इस गीत को 1950 में संविधान सभा द्वारा आधिकारिक रूप से अपनाया गया था। इसे महान लेखक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा था, जो उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'आनंदमठ' का हिस्सा है, जो 1882 में प्रकाशित हुआ। लेकिन, इसकी पहली बार प्रस्तुति 7 नवंबर 1875 को बंगाली पत्रिका 'बंगदर्शन' में हुई थी, जिसके संपादक स्वयं बंकिम थे।
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक संदर्भ
वंदे मातरम् का इतिहास
यह गीत केवल साहित्यिक कृति नहीं है, बल्कि यह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी रहा है। 1907 में, मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट में भारतीय तिरंगा फहराया था, जिस पर 'वंदे मातरम्' लिखा था। यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया।
रवींद्रनाथ टैगोर का योगदान
पहली बार रवींद्रनाथ टैगोर ने गाया था गाना
यह गीत पहली बार 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा गाया गया था, और उन्होंने इसे संगीतबद्ध भी किया। 1905 में बंगाल विभाजन आंदोलन के दौरान 'वंदे मातरम्' एक राजनीतिक नारे के रूप में उभरा। 1906 में 'बंदे मातरम्' नाम से एक अंग्रेजी दैनिक अखबार भी शुरू किया गया, जिसमें श्री अरबिंदो संपादक रहे।
वंदे मातरम् का अर्थ
वंदे मातरम् का वास्तविक अर्थ
यह गीत मातृभूमि की वंदना करता है। इसकी प्रारंभिक पंक्तियों में भारत माता को जल, फल, फसलों, शीतल हवा और हरी-भरी धरती से भरा हुआ दर्शाया गया है। गीत में यह कहा गया है कि भारत की धरती इतनी सुंदर और समृद्ध है कि इसके आगे सिर झुक जाता है। दूसरे हिस्से में देश को चंद्रमा की रोशनी से दमकती रातों, खिले फूलों, मधुर भाषण, मुस्कान, सुख और वरदान देने वाली मां के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
यह गीत केवल शब्दों का समूह नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, प्रकृति, मातृभूमि और भावनाओं का संगम है। 150 वर्षों बाद भी 'वंदे मातरम्' देशवासियों के दिलों में वही उत्साह, गर्व और राष्ट्रभक्ति जगाता है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में लाखों लोगों को प्रेरित किया।
