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शिक्षक दिवस 2025: प्रेरणादायक शिक्षकों की कहानियाँ

शिक्षक दिवस 2025 के अवसर पर, हम आपको उन शिक्षकों की प्रेरणादायक कहानियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं जिन्होंने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित किया है। ये शिक्षक न केवल बच्चों को पढ़ाते हैं, बल्कि उनके जीवन को भी संवारते हैं। जानें कैसे अनीता, रमेश, गूगनराम, रामलाल और सुरेश ने शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है। इनकी कहानियाँ निश्चित रूप से आपको प्रेरित करेंगी।
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शिक्षक दिवस 2025: प्रेरणादायक शिक्षकों की कहानियाँ

शिक्षक दिवस 2025: प्रेरणादायक शिक्षकों की कहानियाँ

शिक्षक दिवस 2025 (Shikshak Diwas 2025): आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम आपके लिए पांच ऐसे शिक्षकों की प्रेरणादायक कहानियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्होंने शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को साबित करने के लिए अपनी जेब तक खाली कर दी। झुग्गियों में बच्चों को पढ़ाने से लेकर वेस्ट मटेरियल से लैब बनाने तक, ये शिक्षक सच्चे नायक हैं। आइए, जानते हैं इनके प्रेरणादायक किस्सों को, जो हर किसी का दिल जीत लेंगे।


झुग्गियों में बच्चों की जिंदगी संवारी


सेक्टर 14 की निवासी अनीता ने झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को शिक्षित करने का संकल्प लिया है। उनका उद्देश्य स्लम एरिया के बच्चों को शिक्षित करना है, ताकि वे किसी पर निर्भर न रहें। अनीता बताती हैं कि 2018 में एक मेड ने उन्हें बताया कि वह बच्चों की पढ़ाई का खर्च नहीं उठा सकती, इसलिए उसने उनकी पढ़ाई बंद करवा दी। इस पर अनीता ने स्लम एरिया में बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। वह रोज दोपहर 12 से 1 बजे तक बच्चों को पढ़ाती हैं और उन्हें बैड टच और गुड टच के बारे में भी जानकारी देती हैं। शिक्षा के संसाधनों की कमी को देखते हुए उन्होंने स्टेशनरी भी उपलब्ध करवाई। वर्तमान में, वह सेक्टर-14 के पार्ट 2 में 40 बच्चों को पढ़ा रही हैं।


ईंट-भट्ठों से स्कूल तक का सफर


गांव किनाला के राजकीय मॉडल संस्कृति प्राइमरी स्कूल के शिक्षक रमेश सहारण ने ईंट-भट्ठों पर रहने वाले बच्चों की पढ़ाई में रुकावट न आने देने के लिए अपने निजी वाहन से उन्हें स्कूल लाने का निर्णय लिया। जेबीटी रमेश सहारण ने बताया कि गांव के पास ईंट-भट्ठे पर कई मजदूरों के परिवार काम करते हैं, और वहां से करीब 15 बच्चे स्कूल आते हैं। स्कूल आने-जाने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं था, जिससे उनकी पढ़ाई बाधित हो रही थी। इस समस्या को हल करने के लिए शिक्षकों ने मिलकर बच्चों को अपने निजी वाहन में स्कूल लाने का निर्णय लिया। अब, शिक्षकों और ग्रामीणों के सहयोग से स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या बढ़कर 173 हो गई है।


35 साल से जरूरतमंदों की मदद


जिले के कैमरी गांव के निवासी गूगनराम गोदारा, जो राजकीय कॉलेज से प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, पिछले 35 वर्षों से जरूरतमंद विद्यार्थियों की पढ़ाई का खर्च उठाते आ रहे हैं। जिन सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, वहां की समस्या को हल करने के लिए वे शिक्षा विभाग के अधिकारियों से मिलकर समाधान निकालते हैं। इसके अलावा, जो बच्चे किसी कारणवश पढ़ाई छोड़ चुके हैं, उनकी पहचान कर उनके अभिभावकों से मिलकर उन्हें समझाते हैं कि शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। वे अपनी पेंशन से मिलने वाली राशि का उपयोग विद्यार्थियों के हित में करते हैं और कॉलेज में पुरातन छात्र एसोसिएशन बनाकर हर साल 30 होनहार विद्यार्थियों की पढ़ाई का खर्च उठाते हैं।


वेस्ट मटेरियल से बनी लैब


खरकड़ी गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले रामलाल मौर्य ने वेस्ट ऑफ बेस्ट फॉर्मूला का उपयोग करके स्कूल में गणित और विज्ञान की लैब स्थापित की। यह लैब एक कमरे में बनाई गई है, जहां पहले से पांचवीं कक्षा तक के विद्यार्थियों को गणित और विज्ञान के विषयों की जानकारी दी जाती है। उन्होंने वेस्ट मटेरियल का उपयोग करके लैब स्थापित की है, जिसमें पेपर, लड़ी, खाली बॉक्स, बैटरी सेल, एलईडी बल्ब, बोर्ड, ग्लू, मार्कर, वायर, कॉटन और खाली माचिस की डिब्बियाँ शामिल हैं। इन मॉडलों के माध्यम से विद्यार्थियों को जमा, घटा और भाग करने में आसानी होती है।


अपनी जेब से शिक्षक रखा


सच्चा शिक्षक वही है, जो विद्यार्थियों की हर जरूरत को पूरा करने के लिए आगे आए। ऐसा ही किया जेबीटी शिक्षक सुरेश फ्लू ने थुराना की राजकीय प्राथमिक पाठशाला में, जहां शिक्षकों की कमी के कारण बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही थी। जब सरकार और शिक्षा विभाग ने पाठशाला में शिक्षक की नियुक्ति नहीं की, तो फ्लू ने अपने खर्च पर प्राइवेट शिक्षक नियुक्त किया। उन्होंने दो साल तक अपनी जेब से प्राइवेट शिक्षक को वेतन दिया। नवोदय परीक्षा की तैयारी के लिए बच्चों को कोचिंग की आवश्यकता महसूस हुई, तो उन्होंने अपने खर्च पर मुफ्त कोचिंग सेंटर शुरू किया। आज भी, वह अपनी सैलरी का 10 प्रतिशत हिस्सा बच्चों की पढ़ाई और स्कूल की जरूरतों पर खर्च करते हैं।