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क्या आप जानते हैं? छत्तीसगढ़ की एनी क्लेमर फ्रैंक का टाइटैनिक से क्या संबंध है?

छत्तीसगढ़ के जांजगीर चंपा की एनी क्लेमर फ्रैंक का टाइटैनिक से गहरा संबंध है। जानें कैसे एक मिशनरी ने भारत में शिक्षा का प्रकाश फैलाया और अपनी जान की परवाह किए बिना दूसरों की जान बचाई। उनकी कहानी आज भी प्रेरणा देती है।
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छत्तीसगढ़ का अनजाना इतिहास

जांजगीर चंपा, छत्तीसगढ़ का एक ऐसा क्षेत्र है जो अक्सर चर्चा में नहीं आता, लेकिन यहां की एक मिशनरी महिला, एनी क्लेमर फ्रैंक, का टाइटैनिक से गहरा संबंध है। 15 अप्रैल 1912 को जब टाइटैनिक डूबा, तब इस त्रासदी में 1500 लोगों की जान गई, जिनमें एनी भी शामिल थीं।


भारत में एनी का मिशन

मिशनरी के रूप में भारत आई थीं एनी


एनी 1906 में मेनोनाइट मिशनरी के रूप में भारत आईं और जांजगीर-चंपा में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने 1908 में गरीब लड़कियों के लिए एक स्कूल और हॉस्टल की स्थापना की। शुरुआत में, उनके पास केवल 17 छात्र थे, और उन्होंने हिंदी भी सीखी। बाद में, स्कूल का नाम एनी सी. फंक मेमोरियल स्कूल रखा गया।


स्कूल की वर्तमान स्थिति

अब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में स्कूल


वर्तमान में, स्कूल की स्थिति बहुत खराब है। दीवारें जीर्ण-शीर्ण हो चुकी हैं, और यह स्थान एनी की किंवदंती का प्रतीक बन गया है। एनी के जीवन के बारे में जानकारी देने वाली एक छोटी पट्टिका ही बची है।


टाइटैनिक की यात्रा का सफर

कैसे किया टाइटैनिक का सफर?


एनी ने जांजगीर-चंपा से रेल द्वारा मुंबई की यात्रा की और फिर इंग्लैंड के लिए जहाज पर सवार हुईं। उन्हें एसएस हैवरफोर्ड से अमेरिका जाना था, लेकिन जब वह बंद हो गया, तो उन्होंने टाइटैनिक के लिए अपना टिकट बदल दिया।


रिपोर्ट के अनुसार, एनी ने अपने 38वें जन्मदिन का जश्न भी जहाज पर मनाया। 14 अप्रैल की रात को जब टाइटैनिक हिमखंड से टकराया, तो एनी को इसकी सूचना मिली। डेक पर पहुंचने पर, उन्हें एक लाइफबोट में जगह दी गई, लेकिन उन्होंने एक महिला और उसके बच्चे को अपनी सीट देने का निर्णय लिया, जिससे उनकी जान बच गई।