आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित प्रमुख फिल्में: एक नजर

आपातकाल के दौरान सेंसरशिप का प्रभाव
आपातकाल के 21 महीनों में, सरकार ने कला और सिनेमा पर कड़ी सेंसरशिप लागू की। इस दौरान कई फिल्मों को उनके विषयों के कारण सेंसरशिप का सामना करना पड़ा, चाहे वे पहले से बनकर तैयार थीं या निर्माणाधीन।
यहां उन प्रमुख फिल्मों की सूची प्रस्तुत है, जिन्हें आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित किया गया या जिन पर सेंसरशिप का असर पड़ा:
1) आंधी
यह फिल्म, जो 1975 में गुलजार द्वारा बनाई गई थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के जीवन से प्रेरित मानी जाती है। इसे रिलीज के कुछ समय बाद ही प्रतिबंधित कर दिया गया। हालांकि, निर्माताओं ने इसे एक काल्पनिक कहानी बताया, लेकिन सुचित्रा सेन द्वारा निभाए गए किरदार आरती देवी और इंदिरा गांधी के बीच समानताएं स्पष्ट थीं। आपातकाल समाप्त होने के बाद फिल्म से प्रतिबंध हटा लिया गया।
2) किस्सा कुर्सी का
फिल्म निर्माता अमृत नाहटा द्वारा बनाई गई इस फिल्म ने उस समय के राजनीतिक परिदृश्य पर व्यंग्य किया। इसके 'नेगेटिव' को नष्ट कर दिया गया और इसके प्रिंट को सूचना एवं प्रसारण मंत्री वी.सी. शुक्ला ने जब्त कर लिया। फिल्म का मुख्य किरदार गंगाराम संजय गांधी पर आधारित था। नाहटा ने इसे दोबारा बनाया और 1978 में रिलीज किया, लेकिन इस संस्करण को भी सेंसरशिप का सामना करना पड़ा।
3) आंदोलन
लेख टंडन द्वारा निर्देशित यह फिल्म 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन पर आधारित थी। यह एक भारतीय शिक्षक की कहानी है, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ विद्रोह करता है। राकेश पांडे और नीतू सिंह अभिनीत इस फिल्म को भी आपातकाल के दौरान सेंसरशिप का सामना करना पड़ा।
4) चंदा मरुथा
यह कन्नड़ फिल्म पी लंकेश के नाटक 'क्रांति बंटू क्रांति' पर आधारित थी। इसका निर्देशन पट्टाभि राम रेड्डी ने किया था। इसमें उनकी पत्नी स्नेहलता ने अभिनय किया, जिन्हें जेल में डाल दिया गया था और पैरोल पर रिहा होने के पांच दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।
5) नसबंदी
आई एस जौहर द्वारा निर्देशित यह फिल्म आपातकाल के दौरान चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान पर व्यंग्य करती है। इसमें उस समय के प्रमुख अभिनेताओं के 'डुप्लीकेट' शामिल थे। इसके विवादास्पद विषय के कारण इसे प्रतिबंधित किया गया, लेकिन राजनीतिक माहौल बदलने पर 1978 में इसे रिलीज किया गया।
6) क्रांति की तरंगें
आनंद पटवर्धन द्वारा निर्मित यह वृत्तचित्र बिहार में जेपी आंदोलन की शुरुआत और 1975 में आपातकाल लागू होने से पहले इसके राष्ट्रीय आंदोलन में बदलने की कहानी बताता है। आनंद ने 25 साल की उम्र में यह फिल्म बनाई थी, जिसमें जन आंदोलन और नागरिक अशांति को दर्शाया गया था। आपातकाल के दौरान इसे चोरी-छिपे व्यापक रूप से दिखाया गया।