आशुतोष राणा: अभिनय की दुनिया में एक अद्वितीय यात्रा
आशुतोष राणा का परिचय
मुंबई: आशुतोष राणा, एक ऐसा नाम जो अभिनय, अभिव्यक्ति और गंभीरता का प्रतीक बन चुका है। उन्होंने 1990 के दशक में टेलीविजन से अपने करियर की शुरुआत की और अपने प्रभावशाली अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनके निभाए गए किरदारों में इतनी गहराई और शक्ति होती है कि दर्शक उन्हें वास्तविक जीवन से जोड़कर देख सकते हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि फिल्मों में कदम रखने से पहले, आशुतोष राजनीति के क्षेत्र में भी सक्रिय थे।
राजनीति से कला की ओर
आशुतोष राणा का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर के निकट गाडरवारा में हुआ। बचपन से ही वह मंच पर सक्रिय रहे और कॉलेज के दिनों में छात्र राजनीति में उनकी रुचि बढ़ी। सागर विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान, वह एक प्रमुख छात्र नेता बन गए।
कट्टा लहराने की कहानी
उनकी पत्नी रेनुका शहाणे ने एक बार बताया था, "हम शादी से पहले ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। तभी राणा जी के दोस्तों ने पुरानी कहानियाँ सुनानी शुरू कीं, और एक ने कहा, 'भाई, वो किस्सा सुनाइए जब आपने कट्टा लहरा दिया था।' यह सुनकर मेरे परिवार वाले चौंक गए।" राजनीति के उस जोश भरे दौर के बाद, गुरु के कहने पर उन्होंने कला की दुनिया में कदम रखा और मुंबई आ गए।
मुंबई में करियर की शुरुआत
मुंबई पहुंचने के बाद, आशुतोष राणा ने टेलीविजन पर अपने करियर की शुरुआत की। उन्होंने 'स्वाभिमान', 'फर्ज', 'सजलता दीपक' और 'फूलों का तारा' जैसे धारावाहिकों में काम किया। उनके अभिनय को टेलीविजन पर पहचान मिली, और इसी दौरान फिल्म उद्योग के दरवाजे उनके लिए खुल गए। उनकी गहरी आवाज और अभिव्यक्ति ने जल्द ही निर्देशकों का ध्यान आकर्षित किया।
फिल्म 'दुश्मन' से मिली पहचान
1998 में रिलीज हुई फिल्म 'दुश्मन' ने आशुतोष राणा को एक रात में स्टार बना दिया। इस फिल्म में उन्होंने एक साइकॉपैथिक किलर गोकुल पंडित का किरदार निभाया, जिसने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। उनकी आंखों की ठंडक और आवाज की गंभीरता ने इस किरदार को अमर बना दिया। यह किरदार आज भी बॉलीवुड के सबसे डरावने विलेन में गिना जाता है। इसके बाद उन्होंने 'संघर्ष', 'कसूर', 'राज', 'Humpty Sharma Ki Dulhania' और 'टाइगर ज़िंदा है' जैसी फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं।
