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कृष्ण जन्माष्टमी 2025: किन्नर समुदाय की अनोखी परंपरा

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 पर किन्नर समुदाय की अनोखी परंपरा का महत्व जानें। इस परंपरा में एक दिन का विवाह और अगले दिन का शोक मनाना शामिल है। यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रेम और त्याग का संदेश भी देता है। जानें इस अद्भुत परंपरा के पीछे की कहानी और इसके सामाजिक महत्व के बारे में।
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कृष्ण जन्माष्टमी 2025: किन्नर समुदाय की अनोखी परंपरा

कृष्ण जन्माष्टमी 2025: एक अद्भुत कथा

कृष्ण जन्माष्टमी 2025: महाभारत की कहानियों में भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़ी एक अनोखी घटना है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। इस घटना के चलते किन्नर समुदाय हर साल भगवान कृष्ण के पति को अपना 'पति' मानकर एक विशेष परंपरा का पालन करता है। इस परंपरा में वे एक दिन के लिए विवाह करते हैं और अगले दिन शोक मनाते हैं। इसके साथ ही, एक अनोखी रस्म भी होती है जिसमें सिर को प्रतीक के रूप में शामिल किया जाता है। यह परंपरा तमिलनाडु के विलुपुरम जिले में 'कोवगम उत्सव' के दौरान देखने को मिलती है.


महाभारत युद्ध की कथा

कथाओं के अनुसार, महाभारत युद्ध में पांडवों की जीत के लिए माता काली को किसी प्रभावशाली योद्धा का बलिदान देना आवश्यक था। अर्जुन के पुत्र इरावन ने स्वेच्छा से अपने प्राणों की आहुति देने का निर्णय लिया, लेकिन उन्होंने अंतिम इच्छा जताई कि वे विवाह करना चाहते हैं। कोई भी राजकुमारी उस दूल्हे से विवाह करने को तैयार नहीं थी, जिसकी मृत्यु अगले दिन निश्चित थी। तब भगवान कृष्ण ने मोहिनी रूप धारण कर इरावन से विवाह किया। अगले दिन युद्ध में इरावन वीरगति को प्राप्त हुए.


ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष महत्व

तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले से लगभग 25 किलोमीटर दूर कूवगम गांव हर साल एक अनोखे और धार्मिक महत्व वाले महोत्सव के लिए प्रसिद्ध है। यहां मनाया जाने वाला कूवगम महोत्सव ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। यह 18 दिनों तक चलने वाला त्योहार मार्च या अप्रैल के महीने में होता है और इसका केंद्र कूथंडावर मंदिर है, जो अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र इरावन को समर्पित है.


एक दिन का पवित्र विवाह

कूवगम महोत्सव में किन्नर समुदाय इरावन की मूर्ति को साक्षात इरावन मानकर एक दिन के लिए विवाह करते हैं। मंदिर के पुजारी विवाह संपन्न कराते हैं और मंगलसूत्र धारण करवाते हैं.


अगले दिन का विलाप

विवाह के अगले दिन इरावन के बलिदान की स्मृति में किन्नर विधवा के रूप में शोक मनाते हैं। इस दौरान इरावन के सिर का प्रतीक नगर में भ्रमण करवाया जाता है और सभी समुदायजन विलाप करते हैं.


महोत्सव का धार्मिक महत्व

यह त्योहार केवल पौराणिक कथा का स्मरण नहीं है, बल्कि प्रेम, त्याग और वचनबद्धता का प्रतीक भी है। किन्नर समुदाय के लिए यह सबसे पवित्र अवसरों में से एक माना जाता है.


भक्ति और सामाजिक पहचान

कूवगम महोत्सव किन्नरों की धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाता है। यह आयोजन समाज में उनके स्थान को मान्यता देता है और भगवान कृष्ण के मोहिनी रूप से उनके आध्यात्मिक संबंध को उजागर करता है.


सदियों पुरानी परंपरा

कूवगम महोत्सव की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी इसे उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ निभाया जाता है। यह महोत्सव न केवल किन्नर समुदाय के लिए, बल्कि सभी के लिए प्रेम और सम्मान का संदेश लेकर आता है.