Newzfatafatlogo

कोरोना वायरस के नए वेरिएंट्स: फेफड़ों पर प्रभाव और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय

कोरोना वायरस ने एक बार फिर से दुनिया में चिंता बढ़ा दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि नए वेरिएंट्स फेफड़ों की सेहत को प्रभावित कर सकते हैं। पिछले अनुभवों के आधार पर, कई लोग लंबे समय तक सांस लेने में कठिनाई और थकान जैसी समस्याओं का सामना कर चुके हैं। जानें कि क्या इस बार भी ऐसे लक्षण देखने को मिल सकते हैं और क्या सावधानियां बरतनी चाहिए।
 | 
कोरोना वायरस के नए वेरिएंट्स: फेफड़ों पर प्रभाव और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय

कोविड-19 का पुनरुत्थान

कोविड-19: पांच साल पहले कोरोना वायरस ने वैश्विक स्तर पर एक गहरा प्रभाव छोड़ा था, जिसे लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं। अब एक बार फिर से कोरोना का प्रकोप बढ़ने लगा है। यह एक जानलेवा वायरस है, जिसने लाखों लोगों की जान ली थी। संक्रमित मरीजों को फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ा था, क्योंकि यह वायरस श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। क्या नए वेरिएंट्स भी फेफड़ों की सेहत को प्रभावित कर सकते हैं? आइए, विशेषज्ञों से जानते हैं।


विशेषज्ञों की राय

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?


शारदा केयर हेल्थसिटी के श्वसन चिकित्सा विभाग के प्रमुख, डॉक्टर देवेंद्र कुमार सिंह का कहना है कि कोविड-19 फिर से सक्रिय हो रहा है, जिससे फेफड़ों की सेहत पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। शोध और चिकित्सकों की रिपोर्टें यह दर्शाती हैं कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी कई लोगों को लंबे समय तक सांस लेने में कठिनाई, थकान और खांसी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। क्या इस बार भी ऐसा होगा?


फेफड़ों में स्कारिंग और फाइब्रोसिस

फेफड़ों में स्कारिंग और फाइब्रोसिस


कोविड-19 के सबसे गंभीर और दीर्घकालिक समस्याओं में से एक पल्मोनरी फाइब्रोसिस है, जो फेफड़ों की कोशिकाओं में घाव या स्कारिंग का कारण बनता है। शोध से पता चला है कि कोरोना से उबरने वाले व्यक्तियों में से 50% को पल्मोनरी फाइब्रोसिस के लक्षण मिले हैं। यह स्कारिंग रक्त संचार में ऑक्सीजन की आपूर्ति को प्रभावित करती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई और पुरानी खांसी जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं।


लंबे समय तक रहने वाले लक्षण

लंबे समय तक रहने वाले लक्षण


कोरोना से ठीक हो चुके कई लोग महीनों तक क्रॉनिक खांसी, सांस फूलने और थकान जैसी समस्याओं से जूझते हैं। एक अध्ययन में पाया गया है कि लगभग 60% मरीजों में ये लक्षण 3 से 6 महीने बाद भी बने रहते हैं।


क्या इस बार डरने की जरूरत है?

क्या इस बार डरने की जरूरत है?


डॉक्टरों के अनुसार, पिछले वेरिएंट्स ने सांस संबंधी रोगों को जन्म दिया था, लेकिन इस बार ऐसी संभावनाएं कम हैं। नए वेरिएंट्स इम्यूनिटी पर हमला कर रहे हैं, और जिनकी इम्यूनिटी कमजोर है, उन्हें अधिक खतरा हो सकता है। इसके अलावा, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप और अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है।


लॉन्ग कोविड वाले मरीजों के लिए सलाह

लॉन्ग कोविड वाले मरीज रहें सतर्क


पिछले कोविड के लॉन्ग टाइम मरीजों को सांस संबंधी समस्याएं हुई थीं। हालांकि, इस बार लक्षण हल्के हैं, फिर भी जो मरीज पहले प्रभावित हुए थे, उन्हें अधिक सतर्क रहने की सलाह दी जाती है।


क्या करें?

क्या करें?



  • यदि आप कोरोना वायरस से संक्रमित रह चुके हैं और सांस लेने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं, तो फेफड़ों की जांच (जैसे HRCT स्कैन या PFT टेस्ट) अवश्य करवाएं।

  • धूम्रपान से बचें, फेफड़ों को आराम दें और नियमित व्यायाम करें।

  • यदि थकान या सांस फूलने की समस्या बढ़ रही है, तो चिकित्सक या पल्मोनोलॉजिस्ट से परामर्श करें।