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कोल्हापुरी चप्पलें: भारतीय हस्तशिल्प की पहचान और वैश्विक फैशन में विवाद

कोल्हापुरी चप्पलें, जो भारतीय हस्तशिल्प की पहचान हैं, अब वैश्विक फैशन में विवाद का केंद्र बन गई हैं। प्रादा पर इन चप्पलों के डिज़ाइन की नकल करने का आरोप लगाया गया है, जिससे भारतीय कारीगरों ने GI अधिकारों के उल्लंघन का दावा किया है। महाराष्ट्र सरकार ने QR कोड के माध्यम से इन चप्पलों की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने की पहल की है। जानें इस विवाद के पीछे की कहानी और कोल्हापुरी चप्पलों की सांस्कृतिक महत्वता के बारे में।
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कोल्हापुरी चप्पलें: भारतीय हस्तशिल्प की पहचान और वैश्विक फैशन में विवाद

कोल्हापुरी चप्पलों का महत्व

कोल्हापुरी चप्पलें:  भारत की समृद्ध हस्तशिल्प परंपरा में कोल्हापुरी चप्पलें एक विशेष स्थान रखती हैं। यह पारंपरिक जूते महाराष्ट्र की सांस्कृतिक पहचान और आत्मनिर्भरता का प्रतीक हैं, जो अब अंतरराष्ट्रीय फैशन उद्योग में भी चर्चा का विषय बन गई हैं। हाल ही में, इटली के प्रसिद्ध फैशन ब्रांड प्रादा पर इन चप्पलों के डिज़ाइन की नकल करने का आरोप लगा है। भारतीय कारीगरों ने GI अधिकारों के उल्लंघन का दावा किया है, जिससे यह मामला केवल एक फैशन विवाद नहीं, बल्कि पारंपरिक विरासत और वैश्विक बाजार के बीच पहचान की लड़ाई बन गया है।


GI टैग और QR कोड की पहल

GI टैग और QR कोड 

कोल्हापुरी चप्पलें अब QR कोड के माध्यम से प्रमाणित की जा रही हैं। यह पहल महाराष्ट्र सरकार के लिडकॉम (Leather Industries Development Corporation of Maharashtra) द्वारा संचालित की जा रही है, जिसका उद्देश्य जालसाजी को रोकना और कारीगरों की पहचान को उजागर करना है। लिडकॉम के अधिकारियों का कहना है कि हर खरीदार QR कोड स्कैन करके कारीगर का नाम, निर्माण जिला, तकनीक, उपयोग किए गए कच्चे माल और GI प्रमाणीकरण की वैधता की जानकारी प्राप्त कर सकेगा।


प्रादा का विवाद

प्रादा की ‘प्रेरणा’ बनी भारतीय चप्पल

प्रादा ने स्वीकार किया है कि उनके 2026 पुरुष फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल को पारंपरिक भारतीय चप्पलों से प्रेरणा मिली है। हालांकि, ब्रांड ने महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स को बताया कि यह डिज़ाइन अभी प्रारंभिक चरण में है और इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू नहीं हुआ है। इस बीच, प्रादा की एक विशेषज्ञ टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया और स्थानीय कारीगरों से बातचीत की। कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास 12वीं सदी से जुड़ा हुआ है, और यह पारंपरिक जूता प्राकृतिक चमड़े और हाथ से बुनी पट्टियों से बनाया जाता है।


GI अधिकारों का महत्व

GI अधिकार और अंतरराष्ट्रीय नियम

महाराष्ट्र और कर्नाटक सरकारों ने 2019 में कोल्हापुरी चप्पलों के लिए संयुक्त रूप से GI टैग प्राप्त किया। यह टैग अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत केवल विशिष्ट जिलों के कारीगरों को इस चप्पल के निर्माण और विपणन का अधिकार देता है। प्रमाण के अनुसार, केवल पारंपरिक तकनीकों और प्राकृतिक चमड़े से बने उत्पाद ही 'कोल्हापुरी' कहलाने के योग्य हैं।


कारीगरों की पहचान और सशक्तिकरण

कारीगरों की पहचान 

लिडकॉम की प्रबंध निदेशक प्रेरणा देशभ्राता ने कहा, 'कोल्हापुरी चप्पलें सिर्फ फैशन नहीं, बल्कि पारंपरिक कौशल और छोटे कारीगर समुदायों की गरिमा की अभिव्यक्ति हैं।' लिडकॉम, जो 1974 से ग्रामीण कारीगरों को सशक्त बना रहा है, ने प्रशिक्षण, डिजाइन नवाचार और आर्थिक सहायता के माध्यम से कोल्हापुरी चप्पल को वैश्विक पहचान दिलाई है।


सांस्कृतिक संरक्षण का प्रयास

सांस्कृतिक संरक्षण का संकल्प

कोल्हापुरी चप्पलें केवल उपयोग की वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि ये आत्मनिर्भरता और सांस्कृतिक परंपरा की प्रतीक हैं। हमारा लक्ष्य उन हाथों को मजबूत करना है जो इस विरासत को संजोए हुए हैं। लिडकॉम द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण केंद्र और स्वयं सहायता समूह पारंपरिक शिल्प को बदलते आर्थिक परिदृश्य में प्रासंगिक बनाए रखने का प्रयास कर रहे हैं।