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क्या हिंदी सिनेमा में भाषा का ज्ञान है अनिवार्य? जानें कलाकारों की राय

क्या हिंदी सिनेमा में काम करने वाले कलाकारों के लिए हिंदी भाषा का ज्ञान अनिवार्य है? इस लेख में मनोज बाजपेयी, अपारशक्ति खुराना, श्रेयस तलपड़े और मनोज जोशी जैसे कलाकारों की राय को साझा किया गया है। वे बताते हैं कि भाषा की समझ कैसे किरदार की गहराई को प्रभावित करती है। जानें कि कैसे इन कलाकारों ने अपनी भाषा पर पकड़ बनाने के लिए मेहनत की है और क्यों यह सिनेमा की आत्मा है।
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क्या हिंदी सिनेमा में भाषा का ज्ञान है अनिवार्य? जानें कलाकारों की राय

हिंदी दिवस 2025: भाषा की अहमियत

Hindi Diwas 2025: भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रसिद्ध पंक्ति 'निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल' आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, खासकर हिंदी सिनेमा के संदर्भ में। सिनेमा केवल एक दृश्य माध्यम नहीं है, बल्कि यह संवादों और शब्दों के माध्यम से दर्शकों के दिलों में उतरता है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह सवाल उठता है कि क्या हिंदी फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों के लिए हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होना आवश्यक है? आजकल कई फिल्मी सितारे यह स्वीकार करते हैं कि उनकी हिंदी कमजोर है। लेकिन जब दर्शक किसी हिंदी फिल्म का आनंद लेते हैं, तो वे केवल अभिनय नहीं, बल्कि उस भाषा की आत्मा को भी महसूस करना चाहते हैं। इस विषय पर कुछ अनुभवी कलाकारों की राय स्पष्ट है।


मनोज बाजपेयी की राय

मनोज बाजपेयी

अभिनेता मनोज बाजपेयी का मानना है कि जिस भाषा में सिनेमा बन रहा है, उसका ज्ञान होना अनिवार्य है। उनका कहना है कि यह अपेक्षा करना उचित नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम से पढ़े-लिखे युवा पूरी तरह से हिंदी जानें। हालांकि, यदि वे हिंदी सिनेमा में आना चाहते हैं, तो उन्हें कम से कम एक-दो साल हिंदी सीखने में लगाना चाहिए। यदि वे इसके बाद भी नहीं सीखते हैं, तो यह सवाल उठता है।


अपारशक्ति खुराना का दृष्टिकोण

अपारशक्ति खुराना

अभिनेता अपारशक्ति खुराना का कहना है कि हमारी फिल्म इंडस्ट्री का नाम ही हिंदी फिल्म इंडस्ट्री है। वे मानते हैं कि किसी किरदार की गहराई तक पहुंचने के लिए भाषा की समझ जरूरी है। उन्होंने हिंदी की अच्छी पकड़ किताबें पढ़कर और नाटकों में भाग लेकर बनाई है।


श्रेयस तलपड़े की मेहनत

श्रेयस तलपड़े

अभिनेता श्रेयस तलपड़े, जो 'बागी 4' और 'हाउसफुल 4' में नजर आ चुके हैं, बताते हैं कि उन्होंने मराठी घर में पले-बढ़े होने के बावजूद हिंदी में परिपक्वता पर ध्यान दिया। उन्होंने अपने अभिनय में मराठी शैली की झलक न दिखाने के लिए काफी मेहनत की है।


मनोज जोशी का विचार

मनोज जोशी

प्रसिद्ध अभिनेता मनोज जोशी के अनुसार, सही संवाद के लिए भाषा पर पकड़ होना बहुत जरूरी है। उनका कहना है कि जब कलाकार को शब्दों का सही अर्थ नहीं पता होता, तो वह उन्हें सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर सकता। वे देवनागरी में लिखी स्क्रिप्ट को पसंद करते हैं, क्योंकि इससे वे भावों को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं।


भाषा की आत्मा

हिंदी सिनेमा की आत्मा उसकी भाषा में निहित है। संवादों में भाव, हाव-भाव में लय, और स्क्रिप्ट की गहराई तभी संभव है जब कलाकार की भाषा पर पकड़ मजबूत हो। तकनीक और प्रतिभा से कोई भी अभिनेता सफल हो सकता है, लेकिन हिंदी फिल्मों की जड़ों से जुड़ने के लिए हिंदी भाषा का ज्ञान और समझ होना उतना ही आवश्यक है जितना कैमरे के सामने अभिनय करना।