गंगा दशहरा: गंगा के अवतरण की महिमा और पूजा विधि

गंगा दशहरा का महत्व
राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए भगवान शिव की आराधना की और गंगा को स्वर्ग से धरती पर लाने का कार्य किया। जिस दिन गंगा का धरती पर आगमन हुआ, उसे गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है। यह पर्व ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में मनाया जाता है। इस दिन गंगा स्नान, दान, जप, तप, उपासना और उपवास का विशेष महत्व है, जिससे पापों से मुक्ति मिलती है। महर्षि व्यास ने पद्म पुराण में गंगा की महिमा का वर्णन किया है, जिसमें कहा गया है कि गंगा के दर्शन से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। भविष्य पुराण में भी उल्लेख है कि इस दिन गंगा के जल में खड़े होकर गंगा स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को वांछित फल प्राप्त होता है।
गंगा दशहरा की पूजा विधि
इस पर्व पर गंगा किनारे के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है। लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करते हैं और पूजन करते हैं। उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और बिहार में इस पर्व की छटा अद्वितीय होती है। इस दिन मेले का आयोजन भी किया जाता है।
गंगा तट पर स्नान करने के बाद, श्रद्धालु स्वर्ण पात्र में गंगाजी की मूर्ति स्थापित करते हैं और ओम नमः शिवाय, नारायण्यै, दशहरायै, गंगायै नमः का जाप करते हैं। इसके बाद, गंगा को पृथ्वी पर लाने वाले भगीरथ का पूजन किया जाता है। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है, जिसमें फल, दीपक और तिल का दान किया जाता है।
गंगा दशहरा की कथा
महाराज सगर ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया, जिसकी रक्षा उनके पौत्र अंशुमान ने की। यज्ञ का अश्व इन्द्र द्वारा चुराया गया, जिसके बाद अंशुमान ने उसे खोजने का प्रयास किया। अंततः, उन्होंने भगवान महर्षि कपिल के पास अश्व को पाया। इस घटना के बाद, महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तप किया।
भगवान ब्रह्मा ने भगीरथ को गंगा का अवतरण करने का आश्वासन दिया, लेकिन गंगा के वेग को संभालने के लिए भगवान शिव की सहायता की आवश्यकता थी। भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर, ब्रह्मा ने गंगा को अपने कमंडल से छोड़ा और भगवान शिव ने उसे अपनी जटाओं में समेट लिया। अंततः, भगवान शिव ने गंगा को मुक्त किया और वह हिमालय की घाटियों से बहने लगी।