जीवामृत: देसी खाद से फसल उत्पादन में वृद्धि का नया तरीका

जीवामृत: स्थानीय खाद से फसलें दोगुनी करें
जीवामृत (Jivamrit) खेती के क्षेत्र में एक नई क्रांति लेकर आया है। बिहार के रोहतास जिले के किसान लाल बाबू सिंह ने रासायनिक खादों को छोड़कर इस पारंपरिक खाद का उपयोग करना शुरू किया, जिससे न केवल उनकी फसल की गुणवत्ता में सुधार हुआ, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी नया जीवन मिला।
उनकी इस पहल ने उन्हें सम्मान दिलाया और हजारों किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है। आइए जानते हैं कि यह देसी तकनीक खेती को कैसे बदल रही है और आप इसे अपने खेतों में कैसे लागू कर सकते हैं।
रासायनिक खाद को अलविदा कहें: देसी खाद की शक्ति
आजकल के अधिकांश किसान फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया और रासायनिक खादों पर निर्भर हैं। लेकिन लाल बाबू सिंह ने एक नया रास्ता अपनाया। उनका मानना है कि रासायनिक खाद मिट्टी को बंजर बनाती है और फसलों के माध्यम से मानव स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इसलिए, उन्होंने अपने खेतों में जीवामृत का उपयोग शुरू किया।
यह पूरी तरह से प्राकृतिक सामग्री से बना मिश्रण है, जो मिट्टी को पोषण देता है और फसलों की पैदावार को बढ़ाता है। इससे न केवल खेती की लागत कम होती है, बल्कि पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता।
जीवामृत बनाने की सरल विधि
जीवामृत बनाने की प्रक्रिया इतनी आसान है कि कोई भी किसान इसे अपना सकता है। लाल बाबू सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र से प्रशिक्षण लेकर इसकी शुरुआत की। इसके लिए आवश्यक सामग्री हैं:
200 लीटर पानी
10 लीटर देसी गाय का गोमूत्र
20 किलो ताजा गोबर
2 किलो गुड़
2 किलो चने का बेसन
1 किलो ऐसी मिट्टी, जहां रासायनिक खाद का उपयोग न हुआ हो
इन सामग्रियों को एक ड्रम में अच्छे से मिलाएं और इसे सात दिनों तक सुबह-शाम लकड़ी की डंडी से हिलाएं। यह मिश्रण एक एकड़ खेत के लिए पर्याप्त है।
जीवामृत का फसलों और मिट्टी पर प्रभाव
लाल बाबू सिंह के अनुभव से यह स्पष्ट होता है कि जीवामृत का नियमित उपयोग खेतों को पूरी तरह जैविक बना देता है। चार सीजन तक इसके उपयोग से रासायनिक खाद की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। इससे फसल उत्पादन न केवल स्थिर रहता है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी बढ़ती है।
यह देसी खाद पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है। यह मिट्टी को बंजर होने से बचाती है और पानी की खपत को कम करती है। लाल बाबू का कहना है कि उनके खेतों में अब पहले से अधिक उपज हो रही है, और उनकी फसलें बाजार में अच्छी कीमत पर बिक रही हैं।