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तृप्ति साहू का रंगभेद पर खुलासा: 11 सालों का संघर्ष

तृप्ति साहू ने हाल ही में अपने 11 साल के संघर्ष का खुलासा किया, जिसमें उन्होंने रंगभेद और कास्टिंग काउच के खिलाफ अपनी आवाज उठाई। उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें अपने सांवले रंग के कारण बार-बार अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। तृप्ति की कहानी न केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों को दर्शाती है, बल्कि समाज में व्याप्त नस्लवाद की गहरी जड़ों को भी उजागर करती है। जानें उनके विचार और अनुभव इस लेख में।
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तृप्ति साहू का रंगभेद पर खुलासा: 11 सालों का संघर्ष

तृप्ति साहू: रंगभेद और कास्टिंग काउच का सामना


नई दिल्ली: हाल ही में प्राइम वीडियो पर 'पंचायत' सीरीज़ का चौथा सीज़न लॉन्च हुआ, जिसे दर्शकों ने भरपूर सराहा। रघुबीर यादव, नीना गुप्ता और जितेंद्र कुमार जैसे अनुभवी कलाकारों ने अपने अभिनय से शो को और भी खास बना दिया है।


तृप्ति साहू, जो 'खुशबू' का किरदार निभा रही हैं, ने अपने जीवन के कुछ कड़वे अनुभव साझा किए हैं, जो निश्चित रूप से आपको प्रभावित करेंगे।


“मैं अपने रंग के कारण 11 सालों से अस्वीकृति का सामना कर रही हूँ”


एक डिजिटल इंटरव्यू में, तृप्ति ने बताया कि पिछले 11 वर्षों से वह इंडस्ट्री में संघर्ष कर रही हैं और अपने सांवले रंग के कारण बार-बार अस्वीकृति का सामना करना पड़ा है। उन्हें यह सुनने को मिला कि वह 'अमीर' नहीं दिखतीं, जो एक अजीब तर्क है। सबसे दुखद यह है कि उन्हें इस भेदभाव का सामना अपने घर में भी करना पड़ा।


रिश्तेदारों के ताने और 16 साल की लड़की का दर्द


तृप्ति ने बताया कि उनकी माँ भी इस नस्लवाद का शिकार हुईं। उन्होंने एक शादी में रिश्तेदारों के तानों का जिक्र करते हुए कहा, “मैं तब सिर्फ 16 साल की थी और उनकी बातें सुनकर बहुत रोई थी।”


“उसे तो सिर्फ नौकरानी और आदिवासी लड़की के ही रोल मिलते थे!”


तृप्ति ने कहा कि उनके चाचा की बातें सुनकर वह निराश हो गईं और उन्हें लगा कि वह कभी सफल नहीं होंगी। हालांकि, उनकी माँ ने उन्हें समझाया कि उन्हें इन बातों को गलत साबित करना होगा। लेकिन जब वह ऑडिशन देने जाती थीं, तो उन्हें अक्सर सीमित भूमिकाएँ ही मिलती थीं।


तृप्ति ने कहा, “समस्या यह है कि लोग आज भी एक्सप्लोर नहीं करना चाहते। कुछ अमीर लड़कियाँ गोरी नहीं होतीं। इसलिए, 'अगर लड़की अमीर है, तो गोरी भी होगी' वाली सोच गलत है।”


तृप्ति साहू की कहानी समाज में व्याप्त नस्लवाद की गहरी जड़ों को उजागर करती है। यह केवल एक व्यक्ति का दर्द नहीं है, बल्कि उन हजारों लोगों की कहानी है जिन्हें उनके रंग के कारण अवसर नहीं मिलते।