तेजस्वी यादव की दुविधा: मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या और वक्फ कानून पर बयान
तेजस्वी यादव की चुनौतियाँ
राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव कई जटिलताओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें यह चिंता है कि यदि वे अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में उतारते हैं, तो उनकी पार्टी की छवि मुस्लिम समर्थक के रूप में स्थापित हो जाएगी। हालांकि, राजद की छवि पहले से ही ऐसी है। दूसरी ओर, यदि वे मुस्लिम उप मुख्यमंत्री के दावेदार की घोषणा करते हैं, तो इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ सकती है, जो पार्टी के लिए हानिकारक हो सकता है। इस स्थिति में, उन्होंने मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या को सीमित रखा और उप मुख्यमंत्री पद के लिए किसी को नामित नहीं किया। प्रशांत किशोर और असदुद्दीन ओवैसी ने इस मुद्दे को मुस्लिम समुदाय के बीच उठाया है।
इस बीच, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जिन्होंने केवल चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, ने मुस्लिम समुदाय से अपील की है। पिछले चुनाव में नीतीश ने 11 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, लेकिन उनमें से कोई भी जीत नहीं सका। तब उन्होंने बसपा से जीते जमां खान को पार्टी में शामिल किया और मंत्री बनाया।
नीतीश कुमार ने मुसलमानों के लिए किए गए अपने कार्यों का उल्लेख किया है। पसमांदा मुसलमानों का झुकाव हमेशा उनकी ओर रहा है, और चुनाव के बाद के सर्वेक्षणों में यह स्पष्ट हुआ है कि भाजपा के साथ होने के बावजूद, उनकी पार्टी जनता दल यू को 15 से 20 प्रतिशत मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। इस स्थिति ने तेजस्वी यादव को मुश्किल में डाल दिया है, खासकर जब प्रशांत किशोर और ओवैसी के प्रचार ने माहौल को और भी गर्म कर दिया है।
इस बीच, तेजस्वी यादव की पार्टी के एक एमएलसी कारी सोहैब ने वक्फ कानून को फाड़ने का बयान दिया है, जिससे तेजस्वी को इस पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी। उन्होंने कहा कि यदि महागठबंधन की सरकार बनी, तो वक्फ कानून को समाप्त कर देंगे। हालांकि, यह बात सभी को पता है कि केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए कानूनों को राज्य सरकार नहीं बदल सकती। फिर भी, तेजस्वी ने यह बयान दिया है। एनडीए ने इस बयान को अपने पक्ष में भुनाने का प्रयास किया है, जिससे ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। टिकटों की कमी और उप मुख्यमंत्री की घोषणा न करने से ज्यादा समस्या तेजस्वी को इस बयान से हो सकती है।
