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तेहरान: एक राजनीतिक थ्रिलर जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है

तेहरान एक राजनीतिक थ्रिलर है जो दर्शकों को न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर करती है। फिल्म की कहानी एक बम धमाके के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें डीसीपी राजीव कुमार की व्यक्तिगत और पेशेवर लड़ाई को दर्शाया गया है। जॉन अब्राहम के गंभीर अभिनय और संतुलित लेखन के साथ, यह फिल्म दर्शकों को एक गहरी छाप छोड़ती है। जानें फिल्म की विशेषताएँ और पात्रों के बारे में इस समीक्षा में।
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तेहरान: एक राजनीतिक थ्रिलर जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है

फिल्म का परिचय

आजकल की फिल्मों में अक्सर शोर, भव्य संवाद और दिखावे वाले एक्शन का बोलबाला होता है, लेकिन "तेहरान" एक अलग दिशा में बढ़ती है। यह फिल्म दर्शकों को हल्के में नहीं लेती और न ही कहानी को सजावटी बनाती है। सच्ची घटनाओं पर आधारित, यह एक राजनीतिक थ्रिलर है जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति की जटिलताओं के साथ-साथ एक व्यक्ति की निजी लड़ाई को भी संवेदनशीलता से प्रस्तुत करती है। 


कहानी की शुरुआत

फिल्म की कहानी एक भयानक बम धमाके से शुरू होती है जो दिल्ली की गलियों में होता है। इस हादसे में कई लोग घायल होते हैं और एक मासूम बच्ची की जान चली जाती है। यह केवल एक साधारण आतंकवादी हमला नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक समीकरण और अंतरराष्ट्रीय दुश्मनियाँ छिपी हैं।


मुख्य पात्र

इस मामले की जांच की जिम्मेदारी डीसीपी राजीव कुमार (जॉन अब्राहम) को सौंपी जाती है। उनके लिए यह केवल एक जांच नहीं, बल्कि व्यक्तिगत प्रतिशोध बन जाती है, क्योंकि मारी गई बच्ची उनके लिए बहुत खास थी।


कहानी का विकास

जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, राजीव को समझ में आता है कि यह घटना केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें ईरान और इज़राइल के बीच की पुरानी दुश्मनी भी शामिल है। भारत इन दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है।


अभिनय और पात्र

जॉन अब्राहम ने इस बार एक गंभीर और अंदर से टूटे हुए किरदार को निभाया है। उनका अभिनय नज़रों और चुप्पी के माध्यम से संवाद करता है। मानुषी छिल्लर ने एक प्रभावशाली भूमिका निभाई है, जबकि नीरू बाजवा ने एक राजनीतिक रूप से जागरूक डिप्लोमैट का किरदार निभाया है। हादी खजनपुर का आतंकवादी किरदार दर्शकों में डर पैदा करता है।


फिल्म की विशेषताएँ

फिल्म का लेखन संतुलित और प्रभावशाली है, जिसमें न तो अधिक ड्रामा है और न ही भावनात्मक दिखावा। रितेश शाह, आशीष वर्मा और बिंदनी करिआ ने एक ऐसी कहानी बनाई है जो राजनीति, भावना और यथार्थ के बीच संतुलन बनाए रखती है।


तकनीकी पहलू

फिल्म का कैमरा वर्क प्रशंसा के योग्य है। दिल्ली की भीड़भाड़ और अबू धाबी की वीरान लोकेशन्स को रॉ और रियलिस्टिक लेंस से शूट किया गया है। बैकग्राउंड म्यूज़िक कहानी को महसूस कराता है और हावी नहीं होता। फिल्म की लंबाई भी बिल्कुल सही है।


निष्कर्ष

"तेहरान" केवल एक थ्रिलर नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक टिप्पणी है। यह दर्शाती है कि युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़े जाते, बल्कि असली लड़ाइयाँ उन कमरों में होती हैं जहां फ़ैसले लिए जाते हैं। यह फिल्म एक अनुभव है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।


फिल्म की जानकारी

निर्देशक – अरुण गोपालन
कलाकार – जॉन अब्राहम, नीरू बाजवा, मानुषी छिल्लर, हादी खजनपोर
समय – 118 मिनट
रेटिंग – 3.5 /5  
फिल्म अभी ZEE5 पर उपलब्ध है।