धर्मस्थल विवाद में नया मोड़: सुजाता भट्ट ने झूठे आरोपों का किया खुलासा

सुझाता भट्ट का कबूलनामा
Sujata Bhatt: धर्मस्थल विवाद ने एक नया मोड़ लिया है। सुजाता भट्ट ने खुद स्वीकार किया है कि उनके द्वारा लगाए गए आरोप झूठे थे। एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट किया कि अनन्या भट्ट नाम की उनकी कोई बेटी नहीं थी, जबकि पहले उन्होंने दावा किया था कि यह लड़की 2003 में धर्मस्थल से लापता हो गई थी।
झूठे आरोपों की पृष्ठभूमि
एक रिपोर्ट के अनुसार, सुजाता ने बताया कि कुछ कार्यकर्ताओं, जैसे गिरीश मत्तनवर और जयंत टी, ने उन्हें इस मामले में शिकायत दर्ज करने के लिए प्रेरित किया। ये कार्यकर्ता मंदिर प्रशासन के साथ संपत्ति विवाद में उलझे हुए थे, और इसी कारण सुजाता को आगे लाया गया। उनके नए बयान ने उनके पहले के आरोपों को पूरी तरह से पलट दिया है। पहले उन्होंने कहा था कि उनकी 18 वर्षीय बेटी मंदिर में दर्शन के दौरान लापता हो गई थी। इसके अलावा, उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि सच की खोज में उनका अपहरण हुआ और उन्हें तीन महीने तक अस्पताल में कोमा में रखा गया।
विशेष जांच दल (एसआईटी) की कार्रवाई
कर्नाटक सरकार ने इस विवाद के बढ़ने पर एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया। इसका उद्देश्य धर्मस्थल में कथित हत्याओं, यौन शोषण और सामूहिक दफन के आरोपों की सच्चाई को उजागर करना था। इस दौरान एक गवाह ने चौंकाने वाले दावे किए, जिसमें उसने कहा कि उसे मजबूर किया गया कि वह महिलाओं और लड़कियों के शवों को धर्मस्थल की जमीन में दफन करे। उसने यह भी अनुरोध किया कि कब्रों को फिर से खोला जाए ताकि पीड़ितों के साथ हुए यौन अपराधों के सबूत सामने आ सकें।
मानव अवशेषों की खोज
जांच की गंभीरता तब और बढ़ गई जब 7 अगस्त को कर्नाटक के गृह मंत्री परमेश्वर ने बताया कि एसआईटी ने मंगलुरु जिले के धर्मस्थल क्षेत्र में चिन्हित कब्रों से मानव हड्डियों और एक पूर्ण नर कंकाल को बरामद किया है। इन अवशेषों को फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में भेजा गया है ताकि उनकी वैज्ञानिक जांच की जा सके और यह पता लगाया जा सके कि क्या इनमें किसी अपराध के सबूत हैं।
कहानी का नया मोड़
इस मामले की शुरुआत एक मां की न्याय की लड़ाई के रूप में हुई थी, लेकिन सुजाता भट्ट के हालिया कबूलनामे ने पूरे घटनाक्रम को सवालों के घेरे में डाल दिया है। उनके बयान ने स्पष्ट कर दिया है कि अनन्या भट्ट जैसी कोई बेटी नहीं थी। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि निजी मतभेद और संपत्ति विवाद जैसे कारणों से किस तरह से झूठे आरोप गढ़े गए। अब यह मामला केवल जांच का नहीं, बल्कि जनमानस के विश्वास से भी जुड़ गया है। लोग यह पूछ रहे हैं कि क्या इस तरह की मनगढ़ंत कहानियों के जरिए समाज में भ्रम फैलाना और धार्मिक संस्थानों की छवि को धूमिल करना एक सोची-समझी रणनीति थी।