नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ उभरा जन आंदोलन: सुदन गुरुंग की कहानी

नेपाल में विरोध प्रदर्शन का आगाज
नेपाल में विरोध: नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, वॉट्सऐप सहित 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। यह आंदोलन तेजी से हिंसक रूप ले चुका है। काठमांडू समेत कई शहरों में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और राष्ट्रपति के निजी आवास पर हमला कर दिया। इस दौरान कई स्थानों पर तोड़फोड़ की घटनाएं भी हुईं।
मौतों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है
20 की मौत, कई घायल
प्रदर्शनों के दौरान सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष इतना बढ़ गया कि कम से कम 20 लोगों की जान चली गई और 200 से अधिक लोग घायल हुए। स्थिति को देखते हुए सरकार ने सेना को तैनात कर दिया है, खासकर संसद भवन के आसपास सुरक्षा को बढ़ा दिया गया है। इस हिंसा के बाद नेपाल के गृह, स्वास्थ्य और कृषि मंत्री समेत कई नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
सरकार का नया रुख
सरकार का यू-टर्न
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा कि सरकार का उद्देश्य सोशल मीडिया पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना नहीं था, बल्कि इसे नियमों के तहत संचालित करने की योजना थी। हालाँकि, स्थिति बिगड़ने के बाद सरकार ने सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर से प्रतिबंध हटाने का निर्णय लिया है और कहा है कि जल्द ही सभी सेवाएं सामान्य हो जाएंगी।
आंदोलन का चेहरा
आंदोलन का नेतृत्व करने वाला कौन?
इस विरोध का प्रमुख चेहरा 36 वर्षीय सुदन गुरुंग हैं, जो 'हामी नेपाल' नामक एक गैर-सरकारी संगठन का संचालन करते हैं। वे लंबे समय से भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं और खासकर युवाओं में उनकी गहरी पकड़ है। गुरुंग ने 8 सितंबर को अपने इंस्टाग्राम पर युवाओं से अपील की थी कि वे इस अन्याय के खिलाफ खड़े हों और अपनी ताकत दिखाएं।
गुरुंग की प्रेरणादायक यात्रा
2015 के भूकंप से बदली गुरुंग की जिंदगी
सुदन गुरुंग की सामाजिक सक्रियता की शुरुआत 2015 के विनाशकारी भूकंप के बाद हुई थी, जब उन्होंने अपने बच्चे को खो दिया था। पहले वे एक इवेंट ऑर्गनाइजर थे, लेकिन त्रासदी के बाद उन्होंने 'हामी नेपाल' की स्थापना की और सामाजिक सेवा को अपना मिशन बना लिया। आज वे नेपाल के युवा वर्ग में एक प्रेरणास्रोत माने जाते हैं।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन का हश्र
शांतिपूर्ण प्रदर्शन से हिंसक विद्रोह तक
गुरुंग चाहते थे कि यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहे। उन्होंने छात्रों से अपील की थी कि वे स्कूल यूनिफॉर्म में किताबें लेकर सड़कों पर उतरें। लेकिन जैसे ही भीड़ ने संसद भवन की ओर बढ़ना शुरू किया, हालात बिगड़ गए और आंदोलन हिंसक हो गया।