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पीएम मोदी की त्रिपुरा सुंदरी मंदिर यात्रा: जानें इस शक्तिपीठ की विशेषताएँ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 सितंबर को त्रिपुरा सुंदरी मंदिर का दौरा कर सकते हैं। इस मंदिर की विशेषताएँ और महत्व जानें, जिसमें देवी के तीन रूप और भैरव की पूजा का महत्व शामिल है। यह शक्तिपीठ भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहाँ नवरात्रि के दौरान मेला लगता है। जानें इस पवित्र स्थल की अद्भुत कहानियाँ और मान्यताएँ।
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पीएम मोदी की त्रिपुरा सुंदरी मंदिर यात्रा: जानें इस शक्तिपीठ की विशेषताएँ

पीएम मोदी का त्रिपुरा सुंदरी मंदिर दौरा

पीएम मोदी का बांसवाड़ा दौरा: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार तेलबौरा में स्थित त्रिपुरा सुंदरी शक्तिपीठ मंदिर का दौरा कर सकते हैं। प्रशासन ने इस यात्रा की तैयारियों को शुरू कर दिया है और वरिष्ठ अधिकारियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसकी जानकारी दे दी है। प्रधानमंत्री 25 सितंबर को माही परमाणु ऊर्जा परियोजना के शिलान्यास समारोह के लिए छोटी सरवन क्षेत्र का दौरा करेंगे, जिसमें त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन भी शामिल हो सकते हैं।


त्रिपुरा सुंदरी मंदिर की विशेषताएँ

क्या आप जानते हैं कि त्रिपुरा सुंदरी मंदिर के दर्शन से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं और भक्तों को कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है? आइए, इस पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में स्थित इस मंदिर की विशेषताओं के बारे में जानते हैं।


भैरव की पूजा का महत्व

यह देवी का रूप दस महाविद्याओं में से एक है और यह मंदिर त्रिपुरा के उदयपुर में एक पहाड़ी पर स्थित है। इसे भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि यहां देवी सती का दाहिना पैर गिरा था। देवी त्रिपुरा सुंदरी और उनके पति भैरव (त्रिपुरेश) इस मंदिर में विराजमान हैं। कहा जाता है कि भैरव की पूजा किए बिना मंदिर के दर्शन अधूरे माने जाते हैं।


देवी के तीन रूप

कहा जाता है कि देवी यहां दिन में तीन अलग-अलग रूपों में भक्तों को दर्शन देती हैं- प्रातःकाल कुमारिका (बालिका) के रूप में, दोपहर यौवना (युवा) और सायंकाल प्रौढ़ा (परिपक्व) रूप में। इसी कारण इन्हें त्रिपुरा सुंदरी कहा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में देवी दुर्गा की एक भव्य काली मूर्ति स्थापित है, जिसमें अठारह हाथ हैं, जिनमें से प्रत्येक में एक अलग हथियार है। देवी की मुख्य मूर्ति के पीछे 42 भैरवों और 64 योगिनियों की सुंदर मूर्तियां हैं, जो मंदिर की स्थापत्य कला को और बढ़ाती हैं।


मंदिर का ऐतिहासिक महत्व

इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में महाराजा धन माणिक्य ने करवाया था। प्रारंभ में, यह भगवान विष्णु को समर्पित था। लेकिन, प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले, राजा को देवी माया का दर्शन हुआ, जिसमें उन्हें मंदिर में देवी माया का सबसे सुंदर रूप स्थापित करने का निर्देश दिया गया। राजा ने इस निर्देश का पालन किया। इस शक्तिपीठ को कुर्मभिपीठ के नाम से भी जाना जाता है और दूर-दूर से तांत्रिक साधक यहां साधना करने आते हैं।


नवरात्रि का मेला

इस पवित्र मंदिर में नवरात्रि के दौरान मेला लगता है, जिसमें भारी भीड़ उमड़ती है। इसके अलावा, ऐसा माना जाता है कि इस स्थान के दर्शन मात्र से सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।