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बिहार के विधायक सुजीत सिंह की दिलचस्प राजनीतिक यात्रा

बिहार के विधायक सुजीत सिंह की कहानी एक दिलचस्प राजनीतिक सफर को दर्शाती है। भारतीय राजस्व सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर विधायक बनने तक, उनका सफर बेहद तेज़ी से हुआ। जानें कैसे उन्होंने भाजपा में शामिल होकर मात्र डेढ़ महीने में विधायक का चुनाव जीता, और मंत्री पद से चूक गए। इस लेख में उनकी यात्रा के महत्वपूर्ण मोड़ और घटनाक्रमों का विवरण है।
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बिहार के विधायक सुजीत सिंह की दिलचस्प राजनीतिक यात्रा

सुजीत सिंह का मंत्री न बनना और विधायक बनने की कहानी

बिहार में विधायक के रूप में चुने गए सुजीत सिंह इस बार मंत्री पद पर नहीं पहुंच सके, जिससे कई लोग निराश हैं। एक बड़ा वर्ग चाहता था कि भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी सुजीत सिंह को कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा जाए। हालांकि, वे पहली बार विधायक बने हैं, लेकिन उनके पास प्रशासनिक अनुभव की कोई कमी नहीं है।


सुजीत सिंह की विधायक बनने की यात्रा भी कम रोचक नहीं है। सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से लेकर विधायक बनने तक का उनका सफर बेहद तेज़ी से हुआ। उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह पहले से ही उसी सीट से विधायक थीं, जहां से उन्होंने चुनाव लड़ा।


सुजीत सिंह और उनके बैच के अधिकारियों को 13 सितंबर को प्रमोशन मिला था। इसके 10 दिन बाद उनकी पोस्टिंग हुई, लेकिन दो दिन बाद ही उन्होंने वीआरएस के लिए आवेदन कर दिया। आमतौर पर वीआरएस का आवेदन स्वीकार होने में तीन महीने लगते हैं, लेकिन उनका आवेदन मात्र 15 दिन में मंजूर हो गया। इसके बाद, 13 अक्टूबर को वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए। उस समय तक चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। भाजपा में शामिल होने के 24 घंटे के भीतर उन्हें टिकट मिल गया। 6 नवंबर को मधुबनी की गौराबौड़ाम सीट पर चुनाव हुआ और 14 नवंबर को वे विधायक बन गए।


उनके चुनाव में एक दिलचस्प मोड़ यह रहा कि 4 नवंबर को प्रचार बंद होने से ठीक पहले महागठबंधन की पार्टी वीआईपी के उम्मीदवार संतोष सहनी ने चुनाव न लड़ने का निर्णय लिया, जिसका सीधा लाभ सुजीत सिंह को मिला। ध्यान देने योग्य है कि सुजीत सिंह की पत्नी पहले वीआईपी से विधायक थीं और अब भाजपा में शामिल हो गई थीं।