बिहार चुनाव: युवाओं की नई लहर और विकास की राजनीति

बिहार चुनाव: युवाओं की नई लहर
Bihar Chunav: बिहार की राजनीतिक परंपरा लंबे समय से जाति और धर्म के इर्द-गिर्द घूमती रही है, लेकिन इस बार चुनावी परिदृश्य में बदलाव देखने को मिल रहा है। राज्य में युवा वर्ग एक नई लहर के साथ बदलाव की मांग कर रहा है, और नेता भी अब इसी दिशा में आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं। बेरोजगारी, पलायन और विकास जैसे मुद्दे अब चुनावी पोस्टरों और जनसभाओं में प्रमुखता से उठाए जा रहे हैं।
युवा नेताओं की नई पहचान
तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और कन्हैया कुमार जैसे युवा नेता अब खुद को 'बदलाव का प्रतीक' के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये नेता जातिगत समीकरणों से परे जाकर उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो सीधे तौर पर बिहार के युवाओं से जुड़े हैं, जैसे रोजगार की कमी और अन्य राज्यों में पलायन।
तेजस्वी यादव: 10 लाख नौकरियों का वादा
तेजस्वी यादव: 10 लाख नौकरियों का वादा और काम की गिनती
2020 में तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाते हुए 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा किया, जिससे उन्होंने युवा मतदाताओं को सीधे जोड़ लिया। 2022-23 में डिप्टी सीएम के रूप में उन्होंने दावा किया कि 5 लाख नौकरियां दी गईं।
प्रशांत किशोर: जन नेता के रूप में उभरते
प्रशांत किशोर: पॉलिटिकल स्ट्रैटेजिस्ट से जन नेता तक का सफर
प्रशांत किशोर अब हर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। उनकी प्राथमिकता स्पष्ट है - बिहार के युवाओं को बिहार में ही रोजगार मिले, ताकि पलायन की आवश्यकता न पड़े।
कन्हैया कुमार: रोजगार की मांग
कन्हैया कुमार: 'पलायन रोको-नौकरी दो' का नारा
कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार ने राज्य में रोजगार की मांग को लेकर पदयात्रा निकाली। उनका आरोप है कि नीतीश सरकार ने पिछले 20 वर्षों में केवल वादे किए हैं, लेकिन अवसर नहीं दिए।
युवा मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश
युवा वोटर्स को साधने की होड़
तीनों नेता अब उस 70% युवा आबादी को आकर्षित करना चाहते हैं, जिसकी उम्र 35 साल से कम है। यह वही वर्ग है जो शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी बाहर जाने के लिए मजबूर है।
जात-पात से हटकर विकास की राजनीति
जात-पात से हटकर विकास की राजनीति
इस बार बिहार के युवाओं की प्राथमिकता नौकरी है, न कि जातिगत समीकरण। यही कारण है कि नेताओं को भी अपने मुद्दे बदलने पड़ रहे हैं।
अगर बिहार की राजनीति में यह नई सोच कायम रहती है, तो यह केवल एक चुनावी बदलाव नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की शुरुआत भी हो सकती है। बेरोजगारी और पलायन पर ध्यान केंद्रित करने वाले ये युवा नेता आगामी चुनाव को मुद्दों की वास्तविक लड़ाई बना सकते हैं।