भारत-पाकिस्तान सिंधु जल संधि पर नई राजनीतिक बहस
सिंधु जल संधि का नया मोड़
भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से चल रही सिंधु जल संधि अब एक नई राजनीतिक और कूटनीतिक चर्चा का विषय बन गई है। बुधवार को राज्यसभा में विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने पाकिस्तान के प्रति भारत के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा कि जब तक इस्लामाबाद आतंकवाद का समर्थन करना बंद नहीं करता, तब तक इस ऐतिहासिक जल समझौते को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा।जयशंकर ने कहा, "खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते," जो न केवल राजनीतिक हलचल का कारण बना, बल्कि किसानों और आम नागरिकों के बीच भी नई चर्चाओं को जन्म दिया। यह बयान भारत की उस नीति को दर्शाता है जिसमें आतंकवाद को सहन करने की कोई गुंजाइश नहीं है। यह रुख पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देने के साथ-साथ वैश्विक मंच पर भारत की कूटनीतिक स्थिति को भी मजबूत करता है।
क्या सिंधु संधि का ऐतिहासिक बोझ अब समाप्त होगा? जयशंकर ने यह भी कहा कि सिंधु जल संधि एक असामान्य और एकतरफा समझौता था, जिसमें भारत ने अपनी प्रमुख नदियों का नियंत्रण बिना पूर्ण अधिकार के छोड़ दिया था। उन्होंने इसे इतिहास की एक भूल बताया जिसे अब सुधारने की आवश्यकता है।
अपने संबोधन में, विदेश मंत्री ने हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले पर भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की हिंसक घटनाएं पूरी तरह अस्वीकार्य हैं और इसके लिए जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। उनका इशारा पाकिस्तान की ओर था, जिससे यह स्पष्ट होता है कि भारत अब केवल कूटनीतिक वार्ता से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई के संकेतों से भी अपना रुख स्पष्ट कर रहा है।
इस घटनाक्रम का सीधा असर आम भारतीय नागरिकों, विशेषकर उत्तर भारत के किसानों पर पड़ सकता है। यदि भारत सिंधु जल संधि से जुड़ी शर्तों में बदलाव करता है या इसे पूरी तरह स्थगित करता है, तो पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में जल संसाधनों के प्रबंधन में बड़ा अंतर आ सकता है। वहीं, पाकिस्तान की कृषि और सिंचाई व्यवस्था पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा।