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रजनीश दुग्गल की शॉर्ट फिल्म 'फ्रेजाइल' और फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम की जानकारी

रजनीश दुग्गल की शॉर्ट फिल्म 'फ्रेजाइल' ने इटली के 'अमीकोर्टी अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव' में अपनी जगह बनाई है। यह फिल्म फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास करती है, जो एक आनुवंशिक स्थिति है। जानें इसके लक्षण, पहचान और इससे प्रभावित बच्चों के विकास पर इसके प्रभाव के बारे में।
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रजनीश दुग्गल की शॉर्ट फिल्म 'फ्रेजाइल' और फ्रैजाइल एक्स सिंड्रोम की जानकारी

फिल्म 'फ्रेजाइल' का उद्देश्य

नई दिल्ली: पहले के समय में, डॉक्यूमेंट्री फिल्में स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाने का एक प्रमुख साधन थीं। अब हिंदी सिनेमा ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाया है, जिसमें गंभीर बीमारियों को उजागर किया जा रहा है। इसी कड़ी में अभिनेता रजनीश दुग्गल की शॉर्ट फिल्म 'फ्रेजाइल' का नाम लिया जा सकता है, जिसे इटली के प्रतिष्ठित 'अमीकोर्टी अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव' में प्रदर्शित किया गया।


फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम क्या है?

'फ्रेजाइल' एक शॉर्ट फिल्म है, जिसका उद्देश्य 'फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम' के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक आनुवंशिक स्थिति है, जो जन्म के समय बच्चे के साथ होती है। यह स्थिति परिवार में आगे बढ़ती है।


लक्षण और पहचान

हेल्थलाइन के अनुसार, यह समस्या लड़कों में लड़कियों की तुलना में अधिक देखी जाती है, हालांकि लड़कियां भी इससे प्रभावित हो सकती हैं। इसके लक्षण बचपन में ही दिखाई देने लगते हैं, जब बच्चे का विकास अन्य बच्चों की तुलना में धीमा होता है। इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन थेरेपी से बच्चों के जीवन में सुधार किया जा सकता है।


जीन में बदलाव का प्रभाव

जब (एफएमआर1) जीन में कोई परिवर्तन होता है, तो यह एफएमआरपी प्रोटीन का निर्माण करता है या इसकी मात्रा कम होती है। इस कमी के कारण दिमाग का विकास सही तरीके से नहीं हो पाता, जिससे बच्चे को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है।


व्यवहारिक और शारीरिक लक्षण

'फ्रेजाइल एक्स सिंड्रोम' के लक्षण व्यक्ति की उम्र, जेंडर और प्रभावित जीन की गंभीरता के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। यह सिंड्रोम मुख्य रूप से मानसिक और व्यवहारिक विकास को प्रभावित करता है। प्रभावित बच्चों में आमतौर पर मानसिक विकास में देरी होती है, जिसमें सीखने में कठिनाई और सामान्य से कम आईक्यू शामिल हैं।


व्यवहारिक स्तर पर, ये बच्चे अक्सर चिड़चिड़े, बेचैन और हाइपरएक्टिव होते हैं। कभी-कभी, उनका व्यवहार ऑटिज्म से मिलता-जुलता हो सकता है, जैसे कि आंखों में आंखें डालकर बात न करना या सामाजिक बातचीत से बचना। इसके अलावा, कुछ शारीरिक लक्षण भी होते हैं, जैसे लंबा चेहरा, बड़े और बाहर की ओर निकले हुए कान, और शरीर के जोड़ ढीले होना।