विशाल भारद्वाज का 60वां जन्मदिन: संगीत और सिनेमा के क्षेत्र में उनकी यात्रा
विशाल भारद्वाज, जो आज 60 वर्ष के हो गए हैं, ने संगीत और सिनेमा में अद्वितीय योगदान दिया है। क्रिकेटर बनने का सपना देखने वाले विशाल ने एक दुर्घटना के बाद संगीत की दुनिया में कदम रखा। उनके जीवन की यात्रा में कई रोचक मोड़ हैं, जैसे कि उनके पिता की प्रेरणा से संगीत सीखना और गुलजार साहब के साथ काम करना। जानें उनके जीवन की कुछ दिलचस्प बातें और उनकी उपलब्धियों के बारे में।
Aug 4, 2025, 11:29 IST
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विशाल भारद्वाज का जन्मदिन
प्रतिभाशाली विशाल भारद्वाज आज, 04 अगस्त को अपने 60वें जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं। संगीत और सिनेमा में उनकी गहरी रुचि है। उन्होंने क्रिकेटर बनने का सपना देखा था और मेरठ में रहते हुए स्टेट लेवल पर अंडर-19 क्रिकेट खेला। लेकिन किस्मत ने उन्हें सिनेमा की दुनिया में लाने का फैसला किया। आइए, उनके जन्मदिन के अवसर पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें जानते हैं...
जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि
विशाल भारद्वाज का जन्म 04 अगस्त 1965 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर में हुआ। उनका बचपन मेरठ में बीता, जहां उन्होंने स्टेट लेवल पर क्रिकेट खेला। क्रिकेटर बनने की कोशिश के दौरान एक दुर्घटना ने उनकी राह बदल दी। एक टूर्नामेंट से पहले प्रैक्टिस के दौरान उनके अंगूठे की हड्डी टूट गई, जिससे वह क्रिकेट नहीं खेल सके। इसके बाद, उन्होंने पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया और संगीत और निर्देशन की ओर बढ़े।
पिता की प्रेरणा से संगीत की ओर कदम
विशाल ने अपने पिता की सलाह पर संगीत सीखा, जो खुद भी संगीत के क्षेत्र में सक्रिय थे। 17 साल की उम्र में, उनके पिता ने उन्हें एक गाने का संगीत दिया, जिसे सुनकर उन्होंने संगीतकार ऊषा खन्ना से संपर्क किया। 1985 में फिल्म 'यार कसम' में काम करने के बाद, विशाल ने दिल्ली लौटकर अपनी ग्रेजुएशन पूरी की।
विशाल ने म्यूजिक रिकॉर्डिंग कंपनी में भी काम किया, जहां उनकी मुलाकात गुलजार साहब से हुई। उन्होंने गुलजार के साथ 'चड्डी पहन के फूल खिला है' गीत की रिकॉर्डिंग की। 1995 में फिल्म 'अभय' से बतौर संगीतकार उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान फिल्म 'माचिस' से मिली। इस फिल्म के लिए उन्हें 1996 में फिल्मफेयर आर. डी. बर्मन पुरस्कार मिला।
संगीत और निर्देशन में उपलब्धियां
इसके बाद, उन्होंने 'सत्या' (1998) और 'हू तू तू' (1999) जैसी फिल्मों में संगीत दिया। 1999 में फिल्म 'गॉडफादर' के लिए उन्हें बेस्ट संगीतकार का नेशनल अवॉर्ड मिला। विशाल ने 'चाची 420', 'दस कहानियां', 'सोनचिरैया', 'सात खून माफ', 'डार्लिंग्स' और 'खुफिया' जैसी फिल्मों में भी संगीत दिया।
निर्देशक के रूप में, विशाल ने 'ओंकारा', 'हैदर', और 'मकबूल' जैसी शानदार फिल्में बनाई हैं। इसके अलावा, उन्होंने 'कमीने', 'रंगून', 'पटाखा', 'सात खून माफ', और 'मटरू की बिजली का मंडोला' जैसी फिल्मों का निर्देशन किया है।