शफीक सैयद: एक ऑस्कर नॉमिनेटेड अभिनेता की संघर्ष भरी कहानी

एक छोटे से लड़के की बड़ी कहानी
1988 में, बैंगलोर की झुग्गियों से एक 12 वर्षीय लड़का, शफीक सैयद, ने अपनी अदाकारी से दुनिया को चौंका दिया। उन्होंने मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे!' में मुख्य भूमिका निभाई, जो ऑस्कर के लिए नामांकित हुई। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। उस समय, उन्हें प्रतिदिन केवल 20 रुपये और एक वड़ा खाने को मिलता था, लेकिन उनकी अदाकारी ने सभी का दिल जीत लिया।
शोहरत का पीछा करते हुए
शफीक की शानदार परफॉर्मेंस के बावजूद, उन्हें ज्यादा फिल्में नहीं मिलीं। 'सलाम बॉम्बे!' के बाद, उन्होंने केवल एक और फिल्म 'पतंग' में काम किया। बॉलीवुड ने उनकी प्रतिभा की सराहना की, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें भुला दिया गया। उनके पास न तो कोई गॉडफादर था और न ही कोई बड़ा कनेक्शन, जिससे उनका करियर आगे बढ़ सके।
वापसी असल जिंदगी में
नब्बे के दशक की शुरुआत में, शफीक बैंगलोर लौट आए। आज वे ऑटो रिक्शा चलाकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं, जिसमें उनकी मां, पत्नी और चार बच्चे शामिल हैं। उन्होंने टीवी इंडस्ट्री में भी काम करने की कोशिश की, लेकिन वहां भी उन्हें सफलता नहीं मिली। फिर भी, उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी।
अपनी कहानी खुद लिखी
शफीक ने अपनी जिंदगी पर एक किताब 'आफ्टर सलाम बॉम्बे' लिखी है, जिसमें उन्होंने एक छोटे स्टार बनने से लेकर गुमनामी में जाने तक की यात्रा का वर्णन किया है। वे चाहते हैं कि उनकी कहानी पर एक दिन फिल्म बने। उनका मानना है कि उनकी 'सलाम बॉम्बे' फिल्म, 'स्लमडॉग मिलियनेयर' से कहीं अधिक वास्तविक है।
दिल को छू लेने वाली कहानी
शफीक सैयद की कहानी यह दर्शाती है कि कभी-कभी प्रतिभा और पुरस्कार भी किसी के भविष्य को नहीं बदल सकते। उन्हें जितना प्यार मिला, उतना ही जल्दी भुला दिया गया। लेकिन तमाम कठिनाइयों के बावजूद, वे आज भी अपने परिवार और सपनों के लिए मेहनत कर रहे हैं।