सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: ऑनलाइन गेमिंग एक्ट के मामले तीन हाईकोर्ट से स्थानांतरित

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 से संबंधित सभी मामलों को अपने अधीन लेने का निर्णय लिया है, जो पहले विभिन्न उच्च न्यायालयों में चल रहे थे। इस निर्णय के तहत, सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र के अनुरोध को स्वीकार किया है, जिससे एक संगठित और समेकित न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित होगी।
मामलों का स्थानांतरण
इस फैसले के तहत, कर्नाटक, दिल्ली और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में लंबित सभी मामले अब सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिए गए हैं। उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया गया है कि वे केस रिकॉर्ड को, यदि संभव हो, तो डिजिटल प्रारूप में सर्वोच्च न्यायालय में भेजें, ताकि समय की बचत हो सके।
नई याचिकाओं का स्थानांतरण
सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि यदि ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम के खिलाफ कोई नई याचिका अन्य उच्च न्यायालयों में दायर की जाती है, तो उन्हें भी सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाएगा। यह कदम समानांतर कार्यवाही और विभिन्न राज्यों में भिन्न निर्णयों के जोखिम को कम करने के लिए उठाया गया है।
केंद्र की मांग का कारण
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से स्थानांतरण की मांग की, यह तर्क देते हुए कि चूंकि ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 एक केंद्रीय कानून है, इसके प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए। इससे व्याख्या में एकरूपता सुनिश्चित होगी और विभिन्न उच्च न्यायालयों के बीच विरोधाभासी निर्णयों से बचा जा सकेगा।
ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 का महत्व
ऑनलाइन गेमिंग अधिनियम, 2025 भारतीय संसद द्वारा पारित एक महत्वपूर्ण कानून है, जो देश में ऑनलाइन गेमिंग के लाइसेंसिंग, वर्गीकरण और विनियमन के लिए एक संरचित ढाँचा प्रदान करता है। यह कौशल और भाग्य के खेलों के बीच अंतर करके और ऑपरेटरों के लिए जिम्मेदार गेमिंग प्रथाओं को सुनिश्चित करने के लिए नियम निर्धारित करता है।
अब जब सर्वोच्च न्यायालय सभी चुनौतियों की एक साथ सुनवाई करने के लिए तैयार है, तो इसका परिणाम भारत के तेजी से विकसित हो रहे ऑनलाइन गेमिंग उद्योग के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण होगा।