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सूरज यादव की प्रेरणादायक कहानी: कैसे बने डिप्टी कलेक्टर?

सूरज यादव की कहानी एक प्रेरणा है, जिन्होंने गिरिडीह जिले के कपिलो गांव से उठकर डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना पूरा किया। आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने स्विगी और रैपिडो में काम करके अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया। दोस्तों की मदद से उन्होंने एक बाइक खरीदी और डिलीवरी का काम किया। उनकी मेहनत और संघर्ष ने उन्हें JPSC परीक्षा में सफलता दिलाई, जिससे वे आज हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं।
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सूरज यादव की प्रेरणादायक कहानी: कैसे बने डिप्टी कलेक्टर?

सपनों की उड़ान: सूरज यादव की संघर्ष गाथा

झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) परीक्षा में सफलता की एक प्रेरणादायक कहानी गिरिडीह जिले के कपिलो गांव से सामने आई है. यहाँ के निवासी सूरज यादव ने जीवन की अनेक कठिनाइयों को पार करते हुए डिप्टी कलेक्टर बनने का सपना पूरा किया है.


पिता की मेहनत और आर्थिक चुनौतियाँ
सूरज के पिता एक राज मिस्त्री हैं, जो रोजाना मेहनत करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं. इस कारण से परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. सूरज की पढ़ाई और तैयारी के लिए संसाधनों की कमी थी, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी.


स्विगी और रैपिडो से पढ़ाई का खर्च उठाना
रांची में रहते हुए, सूरज ने स्विगी बॉय और रैपिडो राइडर का काम शुरू किया ताकि वे अपनी पढ़ाई का खर्च उठा सकें. हालाँकि, इस काम के लिए आवश्यक बाइक खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे.


दोस्तों का सहयोग
इस कठिन समय में सूरज के दो दोस्तों, राजेश नायक और संदीप मंडल ने उनकी मदद की. दोनों ने अपनी छात्रवृत्ति की राशि सूरज को दी, जिससे उन्होंने एक सेकेंड हैंड बाइक खरीदी और डिलीवरी का काम शुरू किया.


दिन में काम, रात में पढ़ाई
सूरज दिन में लगभग 5 घंटे डिलीवरी बॉय का काम करते थे और बाकी समय पढ़ाई में लगाते थे. उनकी बहन और पत्नी ने भी इस कठिन समय में उनका साथ दिया, जिससे सूरज का हौसला बना रहा.


JPSC इंटरव्यू में बोर्ड का आश्चर्य
जब सूरज ने जेपीएससी इंटरव्यू के दौरान बताया कि वे डिलीवरी बॉय का काम करते हैं, तो बोर्ड के सदस्य हैरान रह गए. उन्हें लगा कि शायद सूरज सहानुभूति पाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन जब बोर्ड ने डिलीवरी से जुड़े तकनीकी सवाल पूछे, तो सूरज ने सभी का सटीक उत्तर दिया, जिससे बोर्ड को यकीन हो गया कि उन्होंने वास्तव में संघर्ष किया है.


संघर्ष से मिली सफलता
सूरज की यह यात्रा मेहनत की एक मिसाल है, जो यह दर्शाती है कि सच्ची लगन और सही दिशा में मेहनत करने से कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती. आज वे डिप्टी कलेक्टर बनकर हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बन गए हैं.