हरतालिका तीज की कथा: पार्वती और शिव का प्रेम

हरतालिका तीज का महत्व
हरतालिका तीज का व्रत भाद्रपद मास की तृतीया को मनाया जाता है। इस वर्ष यह हस्त नक्षत्र में है, जो इसे और भी शुभ बनाता है। इस दिन सुबह 06 बजे तक हस्त नक्षत्र रहेगा। भगवान शिव के अनुसार, जब तीज हस्त नक्षत्र में आती है, तो यह विशेष रूप से फलदायी होती है। इस अवसर पर मां पार्वती और भगवान शिव की मिट्टी की मूर्तियों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद कथा का पाठ और आरती का आयोजन किया जाता है।
कथा का सार
कथा इस प्रकार है: कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और पार्वती अपने गणों के साथ विराजमान थे। महारानी पार्वती ने भगवान शिव से पूछा कि उन्होंने कौन-सा पुण्य किया है, जिसके कारण उन्हें भगवान शिव जैसा पति मिला। भगवान शिव ने बताया कि यह एक गुप्त व्रत है, जिसे भादो मास के शुक्ल पक्ष की तीज के नाम से जाना जाता है। यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण है और इसे करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
पार्वती का तप
भगवान शिव ने आगे बताया कि पार्वती ने बचपन से ही उनकी आराधना की थी। उन्होंने हिमालय की गुफाओं में तप किया, जहां उन्होंने कठिन तपस्या की। इस दौरान पार्वती का शरीर कमजोर हो गया, जिससे उनके पिता राजा हिमाचल चिंतित हो गए। नारद जी ने राजा को बताया कि भगवान विष्णु ने पार्वती को स्वीकार किया है, जिससे राजा ने विवाह के लिए सहमति दी।
पार्वती का विलाप
पार्वती ने जब यह सुना, तो वह दुखी होकर अपनी सहेली के साथ गुफा में चली गईं। वहां उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और कहा कि वह उनकी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। पार्वती ने भगवान शिव से पति रूप में पाने की प्रार्थना की।
विवाह का प्रसंग
भगवान शिव ने पार्वती को आश्वासन दिया और अंततः उनका विवाह हुआ। राजा हिमाचल ने पार्वती का विवाह भगवान शिव से कराया, जिससे सभी प्रसन्न हुए। इस प्रकार हरतालिका तीज का व्रत पार्वती और शिव के प्रेम की कहानी को दर्शाता है।