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प्रयागराज महाकुंभ में आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम

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प्रयागराज महाकुंभ में आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम


प्रयागराज महाकुंभ में आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम


प्रयागराज महाकुंभ में आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम


अनुजा भोरेसौरमंडल को ब्रह्माण्ड कहा जाता है। जिस प्रकार एक ब्रह्माण्ड में ग्रह और तारे सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, उसी प्रकार अनेक ब्रह्माण्ड भी ईश्वर के चारों ओर घूमते हैं। इसमें भारत का स्थान उस शाश्वत एवं अनंत शक्ति के समक्ष आता है। हमारे देश का नाम बहुत अर्थपूर्ण है, क्योंकि ‘भा’ का अर्थ है तेज और ‘रत’ का अर्थ है लीन होना। यदि इन शब्दों कि संधि कि जाए तो भा+रत यानी तेज में लीन होनेवाला अर्थ निकलता है। वहीं प्रचीन साहित्य में ऐसा जिक्र है कि, कण्व ऋषि की पुत्री शकुंतला और राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर हमारे देश का नाम भारत रखा गया है। देश के नाम की उत्पत्ति चाहे जो भी हो, प्रायः यह महसूस किया जाता है कि हमारा भारत हजारों वर्षों से धर्म और अध्यात्म का मूल आधार रहा है। महाकुंभ की शुरुआत से ही कई पौराणिक कथाएं, धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ पढ़ने में आए हैं। नतीजतन प्रयागराज महाकुम्भ में जाने के लिए तीव्र इच्छा पैदा हो गई। सॉफ्टवेयर क्षेत्र में काम करते हुए मुझे देश-विदेश में विभिन्न स्थानों की यात्रा करने का अवसर मिला। मुझे यात्रा करना पसंद है, क्योंकि मुझे प्रकृति और पर्यटन से प्यार है। बच्चों की पढ़ाई और पारिवारिक जिम्मेदारियां हमें लगातार पीछे धकेलती रहती हैं और हमें इसका एहसास भी नहीं होता। लेकिन, प्रयाग जाने की लालसा मुझे शांत बैठने नहीं देती थी। इसलिए, अंततः अपने परिवार से बात करने के बाद मैंने प्रयागराज जाने का फैसला किया। चूंकि बच्चे अभी स्कूल में थे, इसलिए परिवार के सभी बड़ों ने प्रयाग जाने की अपनी योजना बना ली। इसके साथ ही उन्होंने काशी और अयोध्या जाने की भी योजना बनाई। इसके लिए वाहन से सड़क मार्ग से जाने का निर्णय लिया गया। चूंकि मेरे लिए इतने लंबे समय तक घर से दूर रहना संभव नहीं था। इसलिए मैंने निर्णय लिया कि परिवार वाहन से जाएगा और मैं प्रयागराज में उनके साथ हो जाऊंगी। बाकी परिवार अयोध्या और काशी का भ्रमण करने के बाद नौ फरवरी को प्रयागराज के लिए रवाना हुआ। उसी दिन मैं पुणे से फ्लाइट से प्रयागराज पहुंची । प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देख मेरे पति ने मुझे हवाई अड्डे से होटल तक ले जाने के लिए एक बाइक सवार को बुक किया। लेकिन, भारी भीड़ के चलते उन्होंने आने से इनकार कर दिया। प्रयागराज में श्रद्धालुओं का जनसागर देख मन में विचार आया कि अब इस जनसागर को पार कर होटल कैसे पहुंचूंगी? लेकिन, यहीं पर मुझे दैवीय शक्ति का पहला अनुभव हुआ। बहुभाषी समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार के चेयरमैन अरविंद मार्डीकर मेरे साथ विमान में यात्रा कर रहे थे। मेरी परेशानी को देखते हुए उन्होंने मुझे होटल तक पहुंचाने का वादा किया। भीड़ को देख कर ऐसा लगने लगा था कि इस विशाल भीड़ से बाहर निकलने का रास्ता कैसे खोजा जाए..? तभी एक परायी जगह पर मार्डीकर जी से सहायता प्राप्त हुई। मार्डीकर जी ने अपनी कार से जहां तक ​​संभव हुआ, मुझे पहुंचाया। इसके बाद उन्होंने अपने एक वरिष्ठ सहकर्मी को मुझे होटल तक सुरक्षित पहुंचाने का निर्देश दिया और वे रवाना हो गए। इसके बाद मार्डीकर जी के सहकर्मी ने मुझे सुरक्षित मेरे होटल तक पहुंचाया। इस कलियुग मे जहां इन्सान व्यापारी और दुनिया बनी हुई है वहां, बुजुर्गों के आशिर्वाद से मार्डीकर जी जैसे लोग सहायता करने पहुंच जाते हैं। इस मदद के चलते मैं और परिवार के सभी लोग एक ही समय पर होटल पहुंचे और कुछ देर आराम करने के बाद हम ब्रह्म मुहूर्त में स्नान के लिए चले गए। हर जगह लोग ही लोग थे। मानो वहां जनसैलाब उमड़ा हो। इस भीड़ में बूढ़े, छोटे बच्चे और विकलांग सभी ऐसे चल रहे थे जैसे उनमें कोई अज्ञात शक्ति समाहित हो। उस जादुई माहौल ने एक अलग ही एहसास दिया। थोड़ी ही देर में हम घाट पर पहुंच गए, पवित्र स्नान किया, गंगा जल भरा, तट पर पूजा और आरती की और आनंद का अनुभव किया। इतनी भीड़ में भी आपको कभी भी गंदगी या परेशानी महसूस नहीं होती क्योंकि वहां आने वाला हर व्यक्ति आस्था की गहराइयों में डूबा होता है और आप भी उस ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं। महाकुम्भ एक अद्भुत अनुभव है जिसे शब्दों में बयां करना वाकई मुश्किल है। आपको वहां जाना होगा और इसका अनुभव करना होगा। अगले दिन हमने वहां के अखाड़ों और मंदिरों का भ्रमण किया और महाकुम्भ को अपनी आंखों और मन में संजोए हमने अपनी वापसी यात्रा शुरू की। मैं और मेरी सासू मां हवाई जहाज से पुणे पहुंचे। वहीं पति और परिवार के अन्य सदस्य चित्रकूट और नेवासा होते हुए सड़क मार्ग से पुणे पहुंचे। कुम्भ मेला व्यक्तिगत आस्था का विषय है, लेकिन यदि आप फिर भी जाने की सोच रहे हैं तो आपको अवश्य जाना चाहिए। महाकुम्भ की भीड़ और गंगा के जल में डुबकी लगा कर व्यक्ति कितना पवित्र होता है या नहीं इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन, महाकुम्भ में अमीर-गरीब, जाति-पंथ, धर्म-संप्रदाय, पुरुष-महिला यह सारे भेद दूर होकर सभी आस्था, संस्कृति और परंपरा का संगम मे एकाकार होते हैं।(लेखिका, पुणे में रहती हैं। आईटी एक्सपर्ट हैं।)

हिन्दुस्थान समाचार / मनीष कुलकर्णी