Siddhant Chaturvedi की नई फिल्म 'धड़क 2': एक गहरे किरदार की कहानी

Siddhant Chaturvedi का नया सफर
Siddhant Chaturvedi: अभिनेता सिद्धांत चतुर्वेदी, जिन्होंने 'गली बॉय' और 'गहराइयां' जैसी चर्चित फिल्मों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है, अब अपनी आगामी फिल्म 'धड़क 2' के साथ दर्शकों के सामने आने के लिए तैयार हैं। इस फिल्म में वह एक नए और गहरे किरदार में नजर आएंगे, जो दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ने का अनूठा अनुभव प्रदान करेगा। मीडिया से बातचीत में उन्होंने अपने किरदार, फिल्म और जीवन के कुछ महत्वपूर्ण अनुभवों पर चर्चा की। इसके साथ ही, उन्होंने जात-पात जैसे सामाजिक मुद्दों पर एक ऐसा अनुभव साझा किया, जो दिल को छू लेने वाला था। जब उनसे 'गॉडफादर' के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने अपने पिता को अपना गॉडफादर बताते हुए एक भावुक उत्तर दिया।
'धड़क 2' का सार
'धड़क 2' और सिद्धांत चतुर्वेदी
सिद्धांत चतुर्वेदी ने 'धड़क 2' को एक आत्मिक सीक्वल के रूप में वर्णित किया। उनके अनुसार, "आत्मा वही है, लेकिन परिवेश और परिस्थितियाँ पूरी तरह से भिन्न हैं।" उन्होंने कहा कि पहले भाग में कॉलेज के मासूम प्यार को दर्शाया गया था, जबकि इस बार की कहानी अधिक गहरी और वास्तविक है। "यह प्यार ऐसा है, जिसे केवल देखा या कहा नहीं जा सकता, उसे जीकर ही समझा जा सकता है। इस फिल्म में खामोशी का महत्व बहुत अधिक है, और यही खामोशी फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है।" सिद्धांत ने यह भी बताया कि इस फिल्म में दर्शकों को बहुत कुछ महसूस करने और सोचने की आवश्यकता होगी।
सिद्धांत का किरदार
सिद्धांत चतुर्वेदी का अनुभव
इस फिल्म में सिद्धांत का किरदार एक शांत और सहनशील व्यक्ति का है, जो अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करता। सिद्धांत ने इस पर चर्चा करते हुए कहा, 'जो किरदार मैं निभा रहा हूं, वह बहुत कुछ सहता है, लेकिन ज्यादा बोलता नहीं।' उन्होंने यह भी कहा कि आजकल के समाज में लोग अक्सर मानते हैं कि जो चुप है, वह दबा हुआ है, लेकिन सिद्धांत के अनुसार चुप रहना भी एक ताकत होती है। "कई बार चुप रहकर सहना ही सबसे बड़ा जवाब होता है।"
जात-पात का भेदभाव
जात-पात का भेदभाव
सिद्धांत चतुर्वेदी ने जात-पात के भेदभाव पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया, 'मैं ब्राह्मण परिवार से हूं, मेरे दादाजी बलिया में पंडित थे। लेकिन मेरे पापा की सोच हमेशा बहुत खुली रही, और बचपन में मैंने कभी भेदभाव महसूस नहीं किया।' हालांकि, एक दृश्य में उन्हें जात-पात के भेदभाव का दर्द महसूस हुआ। 'इस फिल्म में एक सीन था, जिसमें एक आदमी केवल अपनी जाति के कारण जमीन पर बैठ गया था। उस सीन ने मुझे अंदर से झकझोर दिया और मुझे महसूस हुआ कि ये जख्म अब भी जिंदा हैं।'
किरदार को जीना
किरदार को सिर्फ निभाना नहीं, जीना पड़ता है
सिद्धांत ने यह भी बताया कि किसी किरदार को निभाना केवल मेकअप और एक्टिंग से नहीं होता, बल्कि उसकी सोच को महसूस करना आवश्यक है। "चेहरा मेकअप से बदल सकता है, लेकिन किरदार की सोच को अपनाना सबसे कठिन होता है। मैं डायरेक्टर की हर बात ध्यान से सुनता हूं और स्क्रिप्ट को केवल पढ़ता नहीं, उसे महसूस करता हूं। फिर अपने अनुभवों से उसमें जान डालता हूं। तभी जाकर वह किरदार सच्चा लगता है।"
फिल्म का क्लाइमैक्स
फिल्म का क्लाइमैक्स
सिद्धांत ने फिल्म के क्लाइमैक्स के बारे में भी चर्चा की। उनका कहना था कि जब लोग फिल्म का अंत देखेंगे, तो वे चौंक जाएंगे। 'यह वह क्लाइमैक्स नहीं है, जिसकी आमतौर पर उम्मीद की जाती है। मुझे लगता है कि थिएटर में कुछ देर के लिए सब शांत हो जाएंगे। क्योंकि तब समझ में आएगा कि यह केवल दो लोगों की नहीं, बल्कि पूरे समाज की कहानी है।'
सिद्धांत का दर्द
सिद्धांत का दर्द
सिद्धांत ने फिल्म के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, 'इस फिल्म को करते हुए कई बार ऐसा लगा कि अगर मैं उस किरदार की जगह होता, तो शायद इतना सह नहीं पाता। लेकिन जब आप किसी को जीते हो, तो उसका दर्द समझ में आता है। कुछ आंसू ऐसे होते हैं जो आंखों से नहीं गिरते, लेकिन मन के अंदर बहुत कुछ बह जाता है।'
गॉडफादर का जिक्र
मेरे पापा ही मेरे गॉडफादर हैं
जब सिद्धांत से पूछा गया कि उनका गॉडफादर कौन है, तो उन्होंने स्पष्टता से कहा, "मेरे पापा ही मेरे गॉडफादर हैं।" उन्होंने आगे बताया कि उनके पिता ही उनके सबसे बड़े सपोर्टर और सच्चे आलोचक रहे हैं। 'उन्होंने मुझे हमेशा वही करने दिया जो मेरा दिल चाहता था। मुझे लगता है कि किसी पिता का अपने बेटे में ऐसा भरोसा रखना ही सबसे बड़ी बात होती है। अगर मैं उन्हें और मम्मी को वह सब दे सकूं, जिसके वे हकदार हैं, तो वही मेरी सबसे बड़ी जीत होगी।'