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गीता महोत्सव: सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत उत्सव

कुरुक्षेत्र में आयोजित अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में विभिन्न प्रदेशों से आए कलाकारों की प्रस्तुतियों से संस्कृति की गूंज सुनाई दे रही है। हरियाणा कला परिषद द्वारा 74 तीर्थ स्थलों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं, जो 1 दिसंबर तक जारी रहेंगे। इस महोत्सव में हरियाणवी नृत्य, भजन और लोकगीतों के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत प्रदर्शन किया जा रहा है। जानें इस अद्भुत उत्सव के बारे में और कैसे यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति और अध्यात्म का उत्सव बनकर उभर रहा है।
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गीता महोत्सव: सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत उत्सव

गीता महोत्सव, कुरुक्षेत्र: संस्कृति की गूंज

गीता महोत्सव, कुरुक्षेत्र: अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के दौरान ब्रह्मसरोवर के घाटों से लेकर 48 कोस भूमि के पवित्र स्थलों तक सांस्कृतिक गतिविधियों की धुन सुनाई दे रही है।


विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों की अद्भुत प्रस्तुतियां ब्रह्मसरोवर पर श्रद्धालुओं को आकर्षित कर रही हैं, जबकि हरियाणा कला परिषद प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को गांव-गांव तक पहुंचाने का कार्य कर रही है।


हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेंद्र शर्मा ने बताया कि परिषद द्वारा कुरुक्षेत्र और कैथल जिलों में कुल 74 तीर्थ स्थलों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।


गीता महोत्सव: सांस्कृतिक कार्यक्रम 1 दिसंबर तक

गीता महोत्सव: 1 दिसंबर तक होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम


इन आयोजनों में अनुबंधित कलाकार दल हरियाणवी नृत्य, रागनी, भजन और लोकगीतों के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन कर रहे हैं। कार्यक्रमों की शुरुआत कैथल जिले के डीग स्थित कण्व ऋषि तीर्थ से हुई, जहां दिनेश कुमार और उनके दल ने धार्मिक प्रस्तुतियों से भक्तिमय वातावरण बनाया।


इसके बाद सोम तीर्थ, सैंसा में मनोज जाले और बटेश्वर तीर्थ, बरोट में निखिल व उनके दल ने गीता महोत्सव के महत्व को भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया।


कोटिकूट तीर्थ, क्योड़क में भाल सिंह और उनके साथी कलाकारों ने भजनों की प्रस्तुति देकर श्रद्धालुओं को भक्ति रस में डुबो दिया। नागेंद्र शर्मा ने बताया कि यह सांस्कृतिक श्रृंखला 1 दिसंबर तक जारी रहेगी।


इस दौरान 48 कोस भूमि के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर हरियाणा कला परिषद की प्रस्तुतियां गीता महोत्सव के महायज्ञ में महत्वपूर्ण योगदान देंगी। इन प्रयासों से गीता महोत्सव केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि संस्कृति, अध्यात्म और परंपरा का जीवंत उत्सव बनकर उभर रहा है।