वर्मी कंपोस्ट खाद: युवा किसान की सफलता की कहानी

वर्मी कंपोस्ट खाद: किसानों के लिए लाभकारी विकल्प
वर्मी कंपोस्ट खाद ने मुरादाबाद के एक युवा किसान को आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर किया है, साथ ही उन्हें अच्छी आय का मार्ग भी दिखाया है। शुभांकर नामक इस किसान ने ऑस्ट्रेलियाई केंचुओं की सहायता से वर्मी कंपोस्ट खाद का उत्पादन कर खेती में एक नई क्रांति की शुरुआत की है।
उनकी खाद की मांग गजरौला, रामपुर, और काशीपुर जैसे क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही है। यह खाद फसलों की पैदावार को बढ़ाने में सहायक है और किसानों के खर्चों को भी कम करती है। आइए, इस खाद के लाभ और निर्माण प्रक्रिया को समझते हैं।
खेती में बदलाव लाने वाली वर्मी कंपोस्ट
शुभांकर ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट खाद की मांग उत्तर प्रदेश में लगातार बढ़ रही है। यह रासायनिक उर्वरकों का एक उत्कृष्ट विकल्प है।
यह मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और फसलों की पैदावार को दोगुना करने में मदद करती है। शुभांकर ऑस्ट्रेलियाई केंचुओं का उपयोग करते हैं, जो खाद की गुणवत्ता को और भी बेहतर बनाते हैं। उनकी खाद की स्टॉक होते ही बिक्री हो जाती है। यह न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा भी देती है।
बाजार में बढ़ती मांग
शुभांकर की वर्मी कंपोस्ट खाद की मांग गजरौला, रामपुर, ठाकुरद्वारा, काशीपुर, और धामपुर जैसे क्षेत्रों में है। वे इसे 600 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर बेचते हैं।
उनकी खाद की विशेषता यह है कि वे नीचे पिन्नी (बायोमास) नहीं बिछाते, जिससे लागत कम रहती है। ऑस्ट्रेलियाई केंचुए खाद की ताकत को बढ़ाते हैं, जिससे फसलों का उत्पादन बेहतर होता है। शुभांकर का कहना है कि मांग इतनी अधिक है कि वे आपूर्ति पूरी नहीं कर पा रहे हैं। यह खाद किसानों के लिए एक वरदान साबित हो रही है।
वर्मी कंपोस्ट बनाने की सरल प्रक्रिया
वर्मी कंपोस्ट खाद का निर्माण सरल और किफायती है। शुभांकर ने बताया कि गोबर, जैविक कचरा, और केंचुओं का उपयोग करके खाद तैयार की जाती है।
ऑस्ट्रेलियाई केंचुए तेजी से जैविक पदार्थ को विघटित करते हैं, जिससे खाद जल्दी तैयार हो जाती है। यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है और रासायनिक खादों पर निर्भरता को कम करती है। किसान इसे अपने खेतों में डालकर लागत बचा सकते हैं। शुभांकर की सफलता अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।