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अहोई अष्टमी: जानें क्यों तारों को देखना है शुभ और मालपुए का भोग क्यों है खास

अहोई अष्टमी पर माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। माताएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर रात में तारों को जल अर्पित करती हैं। इस अवसर पर मालपुए का भोग अर्पित करना भी शुभ माना जाता है। जानें इस त्यौहार के महत्व और देवी अहोई की पूजा के पीछे की मान्यताएं।
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अहोई अष्टमी: जानें क्यों तारों को देखना है शुभ और मालपुए का भोग क्यों है खास

संतान की लंबी उम्र के लिए माताओं का निर्जला व्रत


अहोई अष्टमी के अवसर पर माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्जला व्रत करती हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इसे संतान के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक रक्षा कवच माना जाता है। माताएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखने के बाद रात में तारों को जल अर्पित करके अपना व्रत खोलती हैं। चंद्रमा को गुड़ की खीर का भोग अर्पित कर व्रत समाप्त किया जाता है, और बच्चों को भी खीर का प्रसाद दिया जाता है।


तारों को अर्घ्य देने का महत्व

अहोई अष्टमी पर तारों को जल अर्पित करने की परंपरा अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसका उद्देश्य यह है कि जैसे आकाश में तारे हमेशा चमकते हैं, वैसे ही हमारे बच्चों का जीवन भी उज्ज्वल और सुरक्षित रहे। तारों को देवी अहोई का वंशज माना जाता है, इसलिए उनकी पूजा और श्रद्धा का विशेष महत्व है।


देवी अहोई: बच्चों के सौभाग्य की रक्षक

अहोई अष्टमी का व्रत बच्चों के स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे करने से बच्चों को विभिन्न बीमारियों से सुरक्षा मिलती है और उनका भविष्य उज्ज्वल होता है। देवी अहोई को बच्चों के सौभाग्य की रक्षक माना जाता है। इस व्रत के माध्यम से घर में सुख-समृद्धि आती है और बच्चे शिक्षा और करियर में उन्नति करते हैं।


मालपुआ: माता अहोई की प्रिय भोग

अहोई अष्टमी पर मालपुए का भोग अर्पित करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह माता अहोई को विशेष प्रिय है। माता को मालपुए का भोग अर्पित करने से वह प्रसन्न होती हैं और संतान की रक्षा करती हैं।


मान्यता है कि अहोई अष्टमी पर मालपुए का भोग लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। यह भोग लगाने के अलावा, व्रत को पूरा करने में मदद करता है और परिवार के लिए शुभ माना जाता है। माता को मालपुए का भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बच्चों को खिलाना भी शुभ माना जाता है।