अहोई अष्टमी व्रत कथा: संतान सुख की कामना का पर्व

अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी का पावन पर्व 17 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा। यह विशेष व्रत मुख्य रूप से महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे संतान की लंबी उम्र और सुखद जीवन की कामना के लिए रखा जाता है। इस दिन, भक्तजन अहोई माता का चित्र बनाकर उनकी पूजा करते हैं और शाम को तारे देखकर अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा इसकी कथा है, जिसे सुनने से अहोई माता की कृपा प्राप्त होती है।
अहोई अष्टमी की कथा
प्राचीन काल में एक गांव में एक साहुकार रहता था, जिसके पास सात बेटे और एक बेटी थी। साहुकार ने अपने सभी बच्चों की शादी कर दी थी। हर साल दीवाली के समय उसकी बेटी मायके आती थी। एक बार दीवाली पर, उसकी बहुएं जंगल से मिट्टी लाने गईं और साहुकार की बेटी भी उनके साथ गई। मिट्टी खोदते समय, उसकी कुदाल से गलती से एक स्याहु (साही) के बच्चे को चोट लग गई, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। गुस्से में स्याहु ने साहुकार की बेटी को श्राप दिया कि वह उसकी कोख बांध देगी।
छोटी भाभी का बलिदान
स्याहु का श्राप सुनकर साहुकार की बेटी ने अपनी भाभियों से विनती की कि वे उसकी जगह अपनी कोख बंधवाएं। उसकी सबसे छोटी भाभी ने उसकी बात मान ली और अपनी कोख बंधवाने को तैयार हो गई। लेकिन इसके बाद, छोटी भाभी के सभी बच्चे सात दिन बाद मर जाते। दुखी होकर, उसने पंडित से इसका कारण पूछा, जिसने उसे सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही गाय और गरुड़ पंखनी की मदद
छोटी भाभी ने सुरही गाय की सेवा शुरू की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर गाय ने उसे स्याहु माता के पास ले जाने का निर्णय लिया। रास्ते में, जब वे आराम कर रहे थे, छोटी भाभी ने देखा कि एक सांप गरुड़ पंखनी के बच्चे को डंसने वाला था। उसने सांप को मारकर बच्चे की जान बचा ली। लेकिन गरुड़ पंखनी ने गलतफहमी में उसे चोंच मारना शुरू कर दिया। छोटी भाभी ने सच्चाई बताई और गरुड़ पंखनी ने उसे स्याहु माता के पास पहुंचा दिया।
स्याहु माता की कृपा
स्याहु माता ने छोटी भाभी की भक्ति देखकर प्रसन्न होकर कहा कि उसने उनके सिर की जूं निकालकर बड़ी सेवा की है। उन्होंने वचन दिया कि छोटी भाभी को सात बेटे और सात बहुएं मिलेंगी। जब भाभी ने कहा कि उसकी कोख तो बंधी है, तो स्याहु माता ने उसकी कोख खोल दी और आशीर्वाद दिया। घर लौटने पर, छोटी भाभी को सात बेटे और सात बहुएं मिलीं। उसने सात अहोई बनाई, उत्सव मनाया और सात कढ़ाई की। जब जेठानियां उसे रोता न देखकर हैरान हुईं, तो बच्चों ने बताया कि चाची खुशी से उत्सव मना रही हैं। तब से अहोई अष्टमी का व्रत शुरू हुआ, जिसका अर्थ है ‘अनहोनी को होनी बनाना’।