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अहोई अष्टमी व्रत: पूजा विधि और महत्व

अहोई अष्टमी व्रत माताओं द्वारा संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस लेख में हम आपको अहोई अष्टमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और आवश्यक सामग्री के बारे में जानकारी देंगे। जानें कैसे इस दिन पूजा की जाती है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
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अहोई अष्टमी व्रत: पूजा विधि और महत्व

माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए रखती हैं व्रत

माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। यह व्रत कार्तिक मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे अहोई अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। यदि आप भी इस दिन व्रत करने की योजना बना रही हैं, तो आइए जानते हैं कि अहोई माता की पूजा कैसे की जाती है और इसका सही समय क्या है।


अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त

  • अष्टमी तिथि शुरू: 13 अक्टूबर रात 12:24 बजे।
  • अष्टमी तिथि समाप्त: 14 अक्टूबर सुबह 11:09 बजे।
  • अहोई अष्टमी व्रत: सोमवार, 13 अक्टूबर 2025 को।
  • अहोई अष्टमी पूजा का समय: 13 अक्टूबर शाम 5:53 से 7:08 बजे तक।
  • तारों का निकलने का समय: 13 अक्टूबर शाम 06:17 बजे।
  • अहोई अष्टमी चंद्रोदय का समय: 13 अक्टूबर रात 11:18 बजे।


अहोई अष्टमी का व्रत क्यों रखा जाता है

यह व्रत कार्तिक मास में करवा चौथ के चार दिन बाद आता है। इस दिन माताएं संतान की आयु और जीवन में आने वाली बाधाओं से मुक्ति के लिए अहोई माता की पूजा करती हैं।


अहोई अष्टमी की पूजा के लिए आवश्यक सामग्री

इस पूजा के लिए अहोई माता की तस्वीर, श्रृंगार का सामान, जल का कलश, करवा, दीपक, गाय का घी, धूप-बत्ती, रोली, कलावा, अक्षत (चावल), सूखा आटा (चौक बनाने के लिए), दूध, फूल, फल (जैसे सिंघाड़ा) और मिठाई का भोग शामिल होता है। इसके अलावा, अहोई माता की व्रत कथा की पुस्तक भी आवश्यक होती है।


अहोई अष्टमी की पूजा विधि

  • अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  • दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाएं या स्थापित करें।
  • एक मिट्टी या तांबे के कलश में जल भरकर पूजा स्थल पर रखें।
  • कलश के पास एक दीपक जलाएं।
  • संतान की लंबी आयु की कामना करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लें।
  • अहोई माता को रोली, कुमकुम, चावल, हल्दी, फूल-माला, धूप-दीप से सजाएं।
  • फिर फल, मिठाई और पूरी का भोग लगाएं।
  • अहोई माता की कथा सुनें या पढ़ें।
  • पूजा के अंत में आरती करें।
  • शाम को तारों को देखकर गेहूं या चावल के दाने लेकर उन्हें अर्घ्य दें।
  • इसके बाद अपना व्रत खोलें और फल-मिठाई ग्रहण करें।


अहोई अष्टमी के दिन क्या न करें

  • महिलाएं मिट्टी की खुदाई नहीं करें।
  • सात्विक भोजन करें, तामसिक भोजन से दूर रहें।
  • तांबे या पीतल का लोटा ही इस्तेमाल करें।
  • चाकू या कैंची का उपयोग न करें।


अहोई अष्टमी का व्रत कैसे खोला जाता है

यह व्रत तारोदय के समय तारों का दर्शन करके खोला जाता है। संध्या में माताएं अहोई माता की पूजा कर तारों को जल का अर्घ्य देती हैं। इसके बाद व्रत पूरा माना जाता है।