अहोई अष्टमी: संतान की लंबी उम्र के लिए विशेष पर्व
अहोई अष्टमी, जो कार्तिक कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं। इस दिन विशेष पूजा की जाती है, जिसमें दीवार पर आकृतियां बनाई जाती हैं और कथा सुनाई जाती है। इस पर्व से जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं, जो इसके महत्व को दर्शाती हैं। जानें इस पर्व की परंपराएं और इसके पीछे की कहानियां।
Oct 12, 2025, 09:24 IST
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अहोई अष्टमी का महत्व
भारत में हिन्दू समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार ‘अहोई अष्टमी’ कार्तिक कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 13 अक्टूबर को आएगा। यह व्रत मुख्य रूप से माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र और सुखद जीवन के लिए करती हैं, लेकिन अब निसंतान महिलाएं भी इसे संतान की कामना के लिए रखती हैं। इस दिन महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और शाम को दीवार पर आठ कोष्ठक की आकृति बनाती हैं। इसके साथ ही, सेई और उसके बच्चों के चित्र भी बनाए जाते हैं। पूजा के लिए कलश स्थापित किया जाता है और उसके बाद अष्टमी का पूजन किया जाता है। फिर दूध-भात का भोग लगाकर कथा सुनाई जाती है। आजकल कई महिलाएं बाजार से रेडीमेड चित्र खरीदकर उनका पूजन करती हैं।
कथाएं और परंपराएं
अहोई अष्टमी व्रत से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक साहूकार की पत्नी ने अनजाने में एक सेह के बच्चे की हत्या कर दी, जिसके बाद उसके सभी बेटे मर गए। दुखी होकर उसने अहोई माता की आराधना की और उसके बाद उसे सात पुत्रों का वरदान मिला। इसी प्रकार, एक अन्य कथा में चन्द्रभान नामक साहूकार और उसकी पत्नी चन्द्रिका ने भी अहोई माता की कृपा से दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति की। इस पर्व पर देवी पार्वती की पूजा की जाती है, जिन्हें अनहोनी को होनी में बदलने वाली देवी माना जाता है।