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इंदिरा एकादशी: पितरों की मुक्ति का व्रत

इंदिरा एकादशी का व्रत पितरों की मुक्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत पितृ पक्ष के दौरान आता है और इसके प्रभाव से पितरों को यमलोक से मुक्ति मिलती है। जानें इस व्रत की कथा और विधि, जो राजा इंद्रसेन के माध्यम से प्रकट हुई। इस व्रत को सच्चे मन से करने से पितरों को नरक के कष्टों से मुक्ति मिलती है।
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इंदिरा एकादशी: पितरों की मुक्ति का व्रत

इंदिरा एकादशी का महत्व

पितृ पक्ष का यह समय अपने पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने का होता है। इस दौरान किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान का फल सीधे हमारे पितरों तक पहुंचता है। शास्त्रों में कई व्रतों का उल्लेख है जो पितरों को मुक्ति दिलाते हैं, लेकिन इंदिरा एकादशी का व्रत सबसे प्रभावशाली माना जाता है। यह एकादशी पितृ पक्ष के दौरान आती है, जिससे इसका महत्व और बढ़ जाता है। यह व्रत न केवल व्रत करने वाले के पापों का नाश करता है, बल्कि उनके पितरों को यमलोक की यातनाओं से मुक्त कर स्वर्ग में स्थान दिलाता है।


इंदिरा एकादशी की कथा

सतयुग में महिष्मति नामक राज्य के धर्मात्मा और प्रतापी राजा इंद्रसेन थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी और समृद्ध थी। एक दिन, जब राजा सभा में थे, देवर्षि नारद वहां आए। राजा ने उनका स्वागत किया और उनसे आने का कारण पूछा। नारद जी ने बताया कि वे यमलोक से आए हैं, जहां उन्होंने राजा के पिता को देखा। वे धर्मात्मा थे, लेकिन एकादशी का व्रत न करने के कारण यमलोक में रह रहे थे।


नारद जी ने कहा, "आपके पिता ने संदेश भेजा है कि यदि आप इंदिरा एकादशी का व्रत श्रद्धा से करें, तो उन्हें यमलोक से मुक्ति मिलेगी।" राजा इंद्रसेन ने तुरंत नारद जी से व्रत की विधि पूछी। नारद जी ने बताया कि सुबह उठकर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और दिनभर फलाहार करते हुए भगवान विष्णु की पूजा करें। रात में जागरण करना और अगले दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद व्रत का पारण करना आवश्यक है।


इंदिरा एकादशी के दिन, राजा ने नारद जी के बताए अनुसार व्रत किया। व्रत के पुण्य से राजा के पिता यमलोक से मुक्त होकर स्वर्ग चले गए और आकाश से अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया। अंत में, राजा इंद्रसेन को भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई। इसलिए यह माना जाता है कि जो भी इस एकादशी का व्रत सच्चे मन से करता है या इसकी कथा सुनता है, उसके पितरों को नरक के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।