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उत्पन्ना एकादशी: पूजा और आरती का महत्व

उत्पन्ना एकादशी का पर्व 15 नवंबर को मनाया जाता है, जिसे सभी एकादशियों की जननी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और माता एकादशी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद आरती का विशेष महत्व है, जो भक्तों को शांति और कृपा प्रदान करती है। जानें इस पर्व की पूजा विधि और आरती के महत्व के बारे में।
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उत्पन्ना एकादशी: पूजा और आरती का महत्व

उत्पन्ना एकादशी का पावन पर्व

आज 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी का विशेष पर्व मनाया जा रहा है। इसे सभी एकादशियों की जननी माना जाता है, क्योंकि इसी दिन माता एकादशी का जन्म हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस व्रत के पालन से सभी पाप समाप्त होते हैं, मन को शांति मिलती है और धर्म की रक्षा होती है।


पूजा विधि और आरती

इस दिन भगवान विष्णु और माता एकादशी की विधिपूर्वक पूजा की जाती है। पूजा के बाद कथा सुनना और आरती करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। जब घर में 'ॐ जय एकादशी माता' की आरती गूंजती है, तो माता की कृपा बरसती है।


उत्पन्ना एकादशी की आरती

उत्पन्ना एकादशी की आरती (ॐ जय एकादशी माता)
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता।। ॐ।।
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी।। ॐ।।


आरती के अन्य अंश

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। ॐ।।
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै।। ॐ।।


आरती का महत्व

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै।। ॐ।।