उत्पन्ना एकादशी: महत्व और पूजा विधि
उत्पन्ना एकादशी, जो हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के बाद मनाई जाती है, का विशेष महत्व है। इस दिन भक्त भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और उपवास रखते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, इस दिन विशेष पूजा विधियों का पालन करना चाहिए, जिसमें गणेश पूजा और बाल गोपाल का अभिषेक शामिल है। जानें इस एकादशी के महत्व और पूजा विधि के बारे में विस्तार से।
| Nov 11, 2025, 16:33 IST
उत्पन्ना एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का विशेष स्थान है। यह हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के बाद मनाई जाती है। इस वर्ष, 15 नवंबर को मार्गशीर्ष (अगहन) महीने की एकादशी है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उपवास का महत्व है। ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, वैदिक पंचांग के अनुसार 14 नवंबर को रात 12:49 बजे एकादशी तिथि प्रारंभ होगी और 15 नवंबर को रात 02:37 बजे समाप्त होगी। सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना की जाती है, इसलिए 15 नवंबर को इसे मनाया जाएगा। इस दिन साधक विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा कर सकते हैं।
एकादशी व्रत की विधि
ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि इस एकादशी के दिन गणेश पूजा से धर्म-कर्म की शुरुआत करनी चाहिए। मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। एकादशी पर पवित्र नदी में स्नान करना और दान-पुण्य करना भी महत्वपूर्ण है। दशमी तिथि को शाम के भोजन के बाद दातुन करें और फिर कुछ न खाएं। एकादशी की सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें। भगवान विष्णु की पूजा सोलह चीजों से करें और रात को दीपदान करें। इस दिन भजन-कीर्तन का आयोजन भी किया जाता है।
स्कंद पुराण में एकादशी का उल्लेख
डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, हिंदी पंचांग में एक वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं, और अधिक मास में यह संख्या 26 हो जाती है। स्कंद पुराण में सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी के महत्व के बारे में बताया था। एकादशी व्रत करने से भक्तों को भगवान श्रीहरि की कृपा प्राप्त होती है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
बाल गोपाल का अभिषेक
डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी पर व्रत-उपवास करने के लिए सुबह स्नान के बाद भगवान गणेश की पूजा करें। इसके बाद श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। बाल गोपाल का अभिषेक सुगंधित फूलों वाले जल से करें। पूजा में गौमाता की मूर्ति भी रखें और पंचामृत का भोग लगाएं। पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें और प्रसाद बांटें।
एकादशी की उत्पत्ति
डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को भगवान विष्णु से एकादशी तिथि प्रकट हुई थी। इसलिए इसे उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। पद्म पुराण में श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी के महत्व के बारे में बताया था।
शुभ कार्य और भगवान विष्णु को चढ़ाने वाली चीजें
डॉ. अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी पर शिव पूजा भी करनी चाहिए। विभिन्न राशियों के अनुसार भगवान विष्णु को भोग चढ़ाने की विधि भी बताई गई है।
