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कन्या पूजन: नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व और विधि

नवरात्रि के दौरान कन्या पूजन एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है, जिसे विशेष रूप से अष्टमी और नवमी तिथि को किया जाता है। यह पूजा देवी दुर्गा के 9 रूपों का सम्मान करती है और घर में सुख-समृद्धि लाने का कार्य करती है। इस लेख में कन्या पूजन के महत्व, विधि और नियमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जानें कैसे कन्या पूजन से आपके घर में खुशहाली आ सकती है।
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कन्या पूजन: नवरात्रि में कन्या पूजन का महत्व और विधि

कन्या पूजन का महत्व


कन्या पूजन का महत्व
इस समय शारदीय नवरात्र का पर्व चल रहा है, जो 2 अक्टूबर को समाप्त होगा। नवरात्र के नौ दिनों में माता रानी की उपासना का विशेष महत्व है। इस दौरान कन्या पूजन को अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। हालांकि, इसे किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विशेष रूप से अष्टमी और नवमी तिथि को कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है।


कहा जाता है कि अष्टमी और नवमी पर कन्या पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस लेख में हम जानेंगे कि नवरात्रि में कन्या पूजा का क्या महत्व है और इसे करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।


सुख-समृद्धि का आगमन

कन्या पूजन, नवरात्र के दौरान एक विशेष अनुष्ठान है, जिसमें 2 से 10 साल की कन्याओं की पूजा की जाती है। इस पूजा के दौरान कन्याओं का सम्मानपूर्वक पूजन किया जाता है और उन्हें भोजन तथा दक्षिणा दी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस पूजा से देवी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।


कन्या पूजन का महत्व

कन्या पूजन का आयोजन इसलिए किया जाता है क्योंकि ये 9 कन्याएं देवी दुर्गा के 9 रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनकी पूजा से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


कन्याओं का प्रतीकात्मक महत्व

कन्या पूजन में विभिन्न उम्र की कन्याओं को देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतीक माना जाता है। जैसे 2 वर्ष की कन्या कुमारी कहलाती हैं, जिनकी पूजा से दरिद्रता दूर होती है। वहीं, 9 वर्ष की कन्या दुर्गा का स्वरूप मानी जाती हैं, जिनकी पूजा से सभी विघ्न बाधाएं दूर होती हैं। कन्या पूजन में भैरव बाबा का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक लड़के को भी शामिल किया जाता है।


लांगुर का महत्व

कन्या पूजन में लांगुर (एक बालक) को भैरव बाबा या हनुमान जी का स्वरूप माना जाता है। उनके बिना यह पूजा अधूरी मानी जाती है। धार्मिक मान्यता है कि भैरव बाबा माता दुर्गा के पहरेदार हैं, इसलिए कन्या पूजन में उन्हें भी सम्मान दिया जाता है।


कन्या पूजन के नियम

कन्या पूजन के दौरान कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, जैसे कि 2 से 10 वर्ष की कन्याओं को सम्मानपूर्वक आमंत्रित करना, उनके पैर धोकर आसन पर बिठाना, तिलक लगाकर आरती उतारना, पारंपरिक भोग (पूरी, हलवा, चना) खिलाना और उपहार देना। पूजा के बाद उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए। इस दौरान कन्याओं के प्रति सम्मान और प्रेम रखना चाहिए और किसी भी प्रकार के अपमानजनक व्यवहार से बचना चाहिए।